केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लोकसभा में जम्मूकश्मीर से संबंधित दो विधेयक- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2023, और जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023पेश करने के बाद सदन में भारी शोर-शराबा हुआ और विपक्ष वॉकआउट कर गया. फिर भी, विधेयकों को 6 दिसंबर को निचले सदन से हरी झंडी मिल गई.
ज्यादा हंगामा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पर मचा, जिसमें नामांकित सदस्यों के अधिकार निर्वाचित विधायकों के बराबर करने का प्रस्ताव है. इसके अलावा, मनोनयन केंद्र का प्रतिनिधि उपराज्यपाल करेगा, जो मुख्यमंत्री या निर्वाचित सरकार से परामर्श किए बिना ऐसा कर सकता है. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में पहले ही मनोनीत सदस्यों को अविश्वास प्रस्ताव सहित सभी मामलों में निर्वाचित सदस्यों के बराबर मतदान का अधिकार दे दिया गया था. नया विधेयक अधिनियम की धारा 15 के अनुरूप है जिसमें विधानसभा में दो महिलाओं के मनोनयन की अनुमति है (देखें बॉक्स: बड़ा सदन).
यह विधेयक मई 2022 में गठित सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व वाले तीन सदस्यीय परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर है. 1989 में आतंकवाद के फैलने के बाद हजारों लोग, खासकर कश्मीरी पंडित, हमलों की आशंका से जम्मू के मैदानी इलाकों की तरफ चले गए. जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा और संकटकालीन बिक्री पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1997 उन्हें 'प्रवासी' बताता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, करीब 62,000 परिवार अपना घर छोड़कर घाटी से पलायन कर गए. इसी तरह, 41,844 परिवार ऐसे हैं जो 1947, 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान पीओके से आए थे.
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