दो बार मुख्यमंत्री रहे केसीआर और उनकी पार्टी के नेताओं के खिलाफ जोरदार सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर कांग्रेस पूरी आक्रामकता के साथ विजयी हुई. यह चुनावी रणनीतिकार और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के नवनियुक्त सदस्य सुनील कनुगोलू के अभियान का ही नतीजा था कि बीआरएस विधायकों, केसीआर और उनके परिवार के खिलाफ उभरता असंतोष ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव की एक व्यापक लहर में तब्दील हो गया. इस पहलू को गहराई से समझने से पहले तक यही लग रहा था कि केसीआर की नई विकासात्मक योजनाओं के वादे और राज्य गठन के पुराने भावनात्मक मुद्दे की कोई काट नहीं है. तेजतर्रार राज्य इकाई प्रमुख अनुमुला रेवंत रेड्डी की अगुआई और कनुगोलू की कुशल रणनीति का साथ पाकर कांग्रेस ने संगठनात्मक बदलावों को लागू करने में कोई झिझक नहीं दिखाई. कुछ दिग्गजों को दरकिनार किया गया, नई स्थानीय प्रतिभाओं को तलाशा गया और उन्हें उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारने के साथ अंदरूनी लड़ाई पर भी सख्ती से अंकुश लगाया गया. मई में कर्नाटक में पार्टी की जीत से उत्साहित रेड्डी और कनुगोलू ने प्रचार के दौरान कर्नाटक मॉडल को अपनाया, और रणनीति को दो प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित रखा- 'छह गारंटियों' के माध्यम से कल्याण और कथित तौर पर भ्रष्ट बीआरएस शासन को घेरना. राजस्थान और मध्य प्रदेश में तो अशोक गहलोत और कमलनाथ ने कनुगोलू की सेवाएं लेने की कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के परामर्श को नजरअंदाज कर दिया था. और जैसा कि नतीजे दर्शाते हैं, उन्हें इसकी सख्त जरूरत थी. और, 7 दिसंबर को रेड्डी तेलंगाना के पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री बन गए.
Denne historien er fra December 20, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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