अब जैसी कि चर्चा है, इसके बाद बिहार में एक बड़ी राजनैतिक उठा-पटक हो सकती है. इसकी शुरुआत 29 दिसंबर, 2023 को नीतीश कुमार के जद (यू) का अध्यक्ष बनने के साथ हुई. हालांकि इसमें उनके पूर्ववर्ती ललन सिंह के अध्यक्ष पद से हटने की परिस्थितियों की भी अहम भूमिका बताई जा रही है.
क्यों हटाए गए ललन सिंह?
जद (यू) की तरफ से आधिकारिक रूप से कहा जा रहा है कि ललन सिंह की इस साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में व्यस्तता बढ़ जाएगी, इसलिए वे अध्यक्ष का पद छोड़ रहे हैं. खुद वे भी यही कह रहे हैं. मगर हर कोई यह मानकर चल रहा है कि बात कुछ और है.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, ललन सिंह के अध्यक्ष पद छोड़ने से जद (यू) में राजद समर्थक धड़ा कमजोर हुआ है. कहा जाता है कि हाल के दिनों में पार्टी के दो नेता अशोक चौधरी और संजय झा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कुछ अधिक ही करीबी हो गए हैं. ललन सिंह जो नीतीश के काफी पुराने सहयोगी हैं और महागठबंधन सरकार बनने के वक्त नीतीश के काफी करीब थे, उनकी मुख्यमंत्री से दूरी तब शुरू हुई, जब उनका अशोक चौधरी से विवाद शुरू हुआ.
दोनों के बीच विवाद की जड़ बरबीघा विधानसभा है. अशोक चौधरी बरबीघा विधानसभा को अपनी पारिवारिक सीट मानते हैं. वहां से उनके पिता महावीर चौधरी चार बार और वे खुद दो बार विधायक रह चुके हैं. फिलहाल वहां बिहार के बड़े भूमिहार नेता राजो सिंह के पोते सुदर्शन विधायक हैं. अशोक चौधरी पिछले कुछ दिनों से लगातार बरबीघा जा रहे थे और विधायक के कामकाज पर नकारात्मक टिप्पणियां कर रहे थे. इस बात को लेकर जद (यू) की एक बैठक में तब के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और अशोक चौधरी की भिड़ंत हुई थी और इसके बाद से उनके बीच तनातनी चल रही थी.
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