बहुत देखे, कानून हमारा क्या कर लेगा
India Today Hindi|March 06, 2024
मामला प्रेम में पड़ने का हो, साथ रहने का या कुछ और. राजस्थान के गांवों-ढाणियों के हजारों लोग जाति पंचायतों के फैसलों के आगे लाचार. सामाजिक बहिष्कार उनका गला घोंट रहा, उनका निवाला तक छिन रहा. पुलिस में रिपोर्ट के बावजूद इन पंच-पटेलों का बाल तक होता. प्रशासनिक व्यवस्था उनके आगे पानी भरने को मजबूर
आनंद चौधरी
बहुत देखे, कानून हमारा क्या कर लेगा

यही कोई 11 बजे का वक्त होगा. इसी फरवरी की नौ तारीख. अजमेर जिले के नसीराबाद कस्बे के पास के बांदनवाड़ा गांव में पुलिस चौकी के सामने पुलिया के नीचे 100-150 लोगों की भीड़ जमा थी. पूरा माहौल उत्तेजना का. झगड़े जैसे हालात देखकर पूछताछ की गई तो पता चला कि एक सामाजिक पंचायत चल रही है. 30 गांवों के पंचों की यह पंचायत एक विवाह के बाद दुलहन के पिता से सौदे की रकम वसूलने के लिए बुलाई गई थी. नाता प्रथा के नाम से राजस्थान में चारों ओर फैली इस भयंकर कुरीति के तहत इसे झगड़ा राशि कहते हैं.

दरअसल, पास के ही खनोत गांव के मसरिया बागरिया की शादी दो साल पहले बांदनवाड़ा गांव के उगमा की बेटी गंगा से हुई थी. हाल में गंगा ने मसरिया को छोड़कर एक दूसरे युवक के साथ नाता (आपसी सहमति से एक साथ रहना) कर लिया. मसरिया के परिवार ने उगमा से झगड़ा राशि वसूलने के लिए यह पंचायत बुलाई थी. दो दिन से चल रही इस पंचायत में अलग-अलग गांवों के 30 पंचों के आने के बावजूद आखिरी रकम पर एकराय नहीं बन पा रही थी. पंचों ने उगमा को मसरिया के पिता को डेढ़ लाख रुपए चुकाने का हुक्म दिया लेकिन उगमा का परिवार इसके लिए राजी न था. अंत में मसरिया की मां लगभग धमकाते हुए उगमा से बोल पड़ी, "कल तक झगड़ा राशि न चुकाई तो पूरे परिवार को समाज से बहिष्कृत किया जाएगा और हुक्का पानी बंद कर दिया जाएगा." पंचों ने भी हामी भरी और अगले ही दिन फैसला लागू.

Denne historien er fra March 06, 2024-utgaven av India Today Hindi.

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