रात के दस बजे हैं. बिहार के कोसी अंचल के सहरसा जंक्शन पर लोग बड़ी संख्या में पहुंचे हुए हैं. स्टेशन परिसर में कोई सीढ़ियों और डिवाइडरों पर बैठा है तो कोई न बिछाकर सो गया है. इन सभी लोगों को रात तीन बजे से सुबह पौने नौ बजे के बीच चलने वाली तीन ट्रेनों, क्रमशः जनसाधारण एक्सप्रेस, वैशाली एक्सप्रेस और जनसेवा एक्सप्रेस पर सवार होकर दिल्ली और पंजाब की तरफ जाना है. रोजी-रोजगार के लिए यहां से हजारों किमी दूर जाने का इरादा करके यहां पहुंचे ये यात्री जिन इलाकों के रहने वाले हैं, वहां तीसरे चरण में मतदान होना है. जाहिर है कि अभी सफर को निकले ये यात्री वोटिंग के दिन तक लौटकर नहीं आएंगे. वह इनकी प्राथमिकता में नहीं है.
सहरसा के बिहरा गांव के यही कोई 27-28 साल के आनंदी यादव इसी स्टेशन परिसर में खुले आकाश के नीचे पॉलिथीन बिछाकर सपरिवार बैठे हैं. अगर वे अभी चले जाएंगे तो उनके वोट का क्या होगा ? इस सवाल पर वे सकुचा जाते हैं, फिर कहने लगते हैं, वे "मजबूरी है, इसलिए जा रहे हैं. पंजाब में गेहूं कटनी का यही सीजन है. अभी वहां दोनों जने (पति-पत्नी) 20-25 दिन काम कर लेंगे तो 30,000-35,000 कमा कर लौट आएंगे. फिर रोपनी के टैम पर ही ऐसा चांस मिलेगा."
इसी मजबूरी की वजह से इन दिनों कोसी अंचल के हजारों लोग रोज ट्रेन और बसों पर लद कर मजदूरी करने पंजाब की तरफ जा रहे हैं. गेहूं की कटनी बिहार में भी हो रही है. यहां के इलाकों में भी खेतों में कहीं कटे गेहूं के गट्ठे दिखते हैं, कहीं थ्रेशर से गेहूं की मड़ाई होती दिखती है. संयोग ही है कि हर बार लोकसभा चुनाव के वक्त उत्तर भारत के इलाकों में गेहूं की फसल तैयार हो रही होती है. वोटों की फसल काटने की कोशिश में जुटे कई राजनेताओं की तस्वीर हमें गेहूं की बालियों और हंसिया के साथ मीडिया में दिखती है. मगर उत्तर बिहार के वोटरों के लिए गेहूं की तैयारी का यह मौसम मौका है एक बार में बड़ी आमदनी कर लेने का, ताकि यह पैसा साल भर किसी न किसी तरह काम आए. इसलिए भले उनका वोट न पड़े, वे मौका नहीं गंवाना चाहते.
Denne historien er fra May 08, 2024-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra May 08, 2024-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
लीक से हटकर
मध्य प्रदेश में जंगली सैर से लेकर लद्दाख में पश्मीना के इतिहास को जानने तक, हमने कुछ खास यात्रा अनुभवों की सूची तैयार की है जो आपको एक अनदेखे भारत के करीब ले जाएंगे
खूबसूरत काया का जलवा
भारत की खूबसूरत बालाएं और वैश्विक सौंदर्य प्रतियोगिताएं, लगता है नब्बे के दशक से एक-दूसरे के लिए ही बनी हैं. और यह सिर्फ किस्मत की बात नहीं. खिताब जीतने वाली कई सुंदरियों ने बाद में इसके सहारे अपने करियर को बुलंदियों पर पहुंचाया
खरीदारी का मॉडर्न ठिकाना
शॉपिंग मॉल भारत में '90 के दशक की ऐसी अनूठी घटना है जिसने भारतीय मध्य वर्ग की खरीद के तौर-तरीकों को बदल दिया. 'खरीदारी के साथ-साथ मनोरंजन' केंद्र होने की वजह से वे अब कामयाब हैं. वहां हर किसी के लिए कुछ न कुछ है
छलकने लगे मस्ती भरे दिन
यूबी की किंगफिशर ने 1990 के दशक में बीयर को कूल बना दिया. तब से घरेलू अल्कोहल उद्योग के जोशीले दिन कभी थमे नहीं
डिस्को का देसी अंदाज
घर हो या कोई भी नुक्कड़-चौराहा, हर तरफ फिल्मी गानों की बादशाहत कायम थी. उसके अलावा जैसे कुछ सुनाई ही नहीं पड़ता था. तभी भारतीय ब्रिटिश गायकसंगीतकार बिट्टू ने हमें नाजिया से रू-ब-रू कराया, जिनकी आवाज ने भारतीयों को दीवाना बना दिया. सच में लोग डिस्को के दीवाने हो गए. इसके साथ एक पूरी शैली ने जन्म लिया
जिस लीग ने बनाई नई लीक
लगातार पड़ते छक्के, स्टैंड में बॉलीवुड सितारों और नामी कॉर्पोरेट हस्तियों और सत्ता- रसूखदारों की चकाचौंध, खूबसूरत बालाओं के दुमके - आइपीएल ने भद्रलोक के इस खेल को रेव पार्टी सरीखा बना डाला, जहां हर किसी की चांदी ही चांदी है
आनंद की विरासत
विश्वनाथन आनंद अचानक ही सामने आए और दुनिया फतह कर ली. गुकेश के साथ 2024 में भारत को मिली उपलब्धि उसी विरासत का हिस्सा है
जब स्वच्छता बन गया एक आंदोलन
सामूहिक शर्म से लेकर राष्ट्रीय गौरव तक, खुले में शौच का चलन खत्म करने के देश के सफर में मजबूत सियासी इच्छाशक्ति और नेतृत्व के साथ-साथ समुदाय, कॉर्पोरेट और सेलेब्रिटी के मिलकर काम करने की दास्तान शामिल
जब मौन बन गया उद्घोष
एक पनबिजली परियोजना के विरोध में पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और पत्रकारों ने मिलकर जन जागरुकता अभियान चलाया और भारत के अब बचीखुची उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक, केरल की साइलेंट वैली को बचाने में कामयाब रहे।
बताने को मजबूर हुए बाबू
जमीनी स्तर पर संघर्ष से जन्मे इस ऐतिहासिक कानून ने भारत में लाखों लोगों के हाथों में सूचना का हथियार थमाकर गवर्नेस को न सिर्फ बदल दिया, बल्कि अधिकारों की जवाबदेही भी तय करने में बड़ी भूमिका निभाई