दिल्ली में लंबे समय तक प्रदेश सरकार चलाने वाली पार्टी कांग्रेस 2013 के बाद से हुए विधानसभा चुनावों और 2014 तथा बीते लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई है. ऐसे में जब 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए उसका दिल्ली प्रदेश की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन हुआ तो पार्टी में यह उम्मीद जगी कि एक दशक से अधिक का सूखा खत्म होगा. लेकिन चुनावी जंग में उतरने के पहले ही दिल्ली प्रदेश कांग्रेस आपसी कलह की शिकार होती दिख रही है.
दिल्ली की सात सीटों में से चार पर आप और तीन पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. इन सीटों पर 25 मई, 2024 को वोटिंग होगी. इनके लिए नामांकन दाखिल करने की शुरुआत 29 अप्रैल से हुई है लेकिन इसके ठीक एक दिन पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. आप पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए लवली ने अपने इस्तीफे में इस बात का जिक्र किया है कि वे उसके साथ गठबंधन के विरोध में थे. उनकी दूसरी बड़ी शिकायत यह थी कि दिल्ली यूनिट में उनकी नियुक्तियों को बड़े नेता सहमति नहीं दे रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने दिल्ली में बाहरी उम्मीदवार बनाने का मुद्दा भी उठाया था.
Denne historien er fra May 15, 2024-utgaven av India Today Hindi.
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सोणा पंजाबी एल्बम मान दा
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"हाथ से सितार ले लिया जाए तो मैं दुनिया के किसी काम का नहीं"
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सदा के लिए नहीं रहा हीरा
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लुटी-पिटी विरासत के बादशाह!
बेभाव उधारियां उठाकर केसीआर ने तेलंगाना का दीवाला ही निकाल दिया. उनके इस फितूर का खामियाजा अगले एक दशक तक राज्य को उठाना पड़ेगा
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दिलचस्प से हरियाणे का सियासी सांग
सत्ता-विरोधी भावना का मुकाबला करते हुए कांग्रेस से अपने गढ़ को बचाने की पुरजोर कोशिश में लगी भाजपा. दूसरी ओर अंदरुनी लड़ाई के बावजूद कांग्रेस उम्मीदों पर सवार
उम्मीदों में उलझीं कुछ गुत्थियां भी
विरोध के बावजूद भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की योजना को आगे बढ़ाने की ठानी. अगर ऐसा हुआ तो ये सवाल पूछे जाएंगे कि इससे हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा या कमजोर?
"सड़क हादसो जितनी मौतें तो युद्ध में भी नहीं हुई"
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी देश के हाइवे पर बढ़ते हादसों को लेकर काफी चिंतित हैं और उन्होंने खतरों को घटाने के लिए कई कदम उठाए हैं. लेकिन ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा और एसोसिएट एडिटर अभिषेक जी. दस्तीदार के साथ बातचीत में उन्होंने साफ-साफ स्वीकार किया कि यही इकलौता मामला है जिसमें वे अपने तय किए लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रहे. बातचीत के संपादित अंशः
जान के दुश्मन हाइवे
खराब सड़क डिजाइन, लचर पुलिसिया व्यवस्था, प्रशिक्षण की कमी, नाकाफी सुरक्षा इंतजामात, और हादसे के वक्त इलाज की सुविधा के अभाव की वजह से भारत की सड़कें दुनिया में सबसे ज्यादा जानलेवा-
मेडिकल कुंडली से हो रहा शादी का फैसला
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