कभी वे दुश्मनों की तरह लड़ा करते थे. मगर 18 अप्रैल को एक तपती दोपहरी उन्होंने पुणे की एक रैली में एकसाथ मंच साझा किया. वहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उनके साथी उप-मुख्यमंत्री अजित पवार, राज्य के पूर्व मंत्री हर्षवर्धन पाटील, एनसीपी के दत्तात्रेय भरा और विधान परिषद की उप सभापति डॉ. नीलम गोरे मंच पर विराजमान थीं. अजित पवार ने भाजपा और एकनाथ शिंदे की अगुआई वाले शिवसेना गुट की महायुति सरकार में शामिल होने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को तोड़ दिया था. वहीं, हर्षवर्धन कांग्रेस से पाला बदलकर भाजपा में आए, तो भराणे ने उन्हें पुणे की इंदापुर विधानसभा सीट से दो बार 2014 और 2019 में हराया था. गोरे भी अब शिंदे की शिवसेना में हैं. मंच पर मौजूद कई नेताओं की तरफ इशारा करते हुए फडणवीस ने हुंकार भरी, "जीतने के लिए करीब से आठ लाख वोट चाहिए...जो लोग इस मंच पर हैं, उनमें 12 से 15 लाख वोट लाने की क्षमता है."
महाराष्ट्र 48 सीटों के साथ उत्तर प्रदेश (80) के बाद संसद के निचले सदन में सबसे ज्यादा सांसद भेजने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य है. ऐसे में यह सत्तासीन महायुति गठबंधन और उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी महाविकास अघाड़ी (एमवीए) दोनों के लिए बेहद अहम है. कुछ समय पहले तक राज्य का सियासी परिदृश्य स्थिर था. मगर, दोनों गठबंधन मौके की नजाकत और जरूरत के हिसाब से बनाए गए ऐसे सतरंगी गठबंधन हैं जिनसे महाराष्ट्र की सियासी महागाथा के पेचीदा घुमावों और उतारचढ़ावों की झलक मिलती है. चाचा और भतीजे, चचेरे ममेरे भाई-बहन, ननद और भाभी इस तरह एक दूसरे के खिलाफ इस कदर डटी हैं कि महाराष्ट्र के महाभारत का सियासी संस्करण बॉलीवुड की धमाकेदार हिट से हिट फिल्म को भी शर्मिंदा कर दे. असल में, इन दोनों गठजोड़ के किरदारों का प्रदर्शन इनसे भी व्यापक गठबंधनों-राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी इंडियन नेशनलिस्ट डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया)-की किस्मत तय करेगा.
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परदेस में परचम
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ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
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लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.