राजस्थान के अजमेर में 1874-75 में मेयो कॉलेज की स्थापना के साथ औपचारिक रूप से अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत हुई थी. पूरे भारत में इसकी काफी प्रतिष्ठा है लेकिन इसी राज्य में इन दिनों सियासत इस बात पर उबाल मार रही है कि सरकारी अंग्रेजी स्कूल हों या नहीं.
राजस्थान में अंग्रेजी स्कूलों को लेकर ताजा विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब सूबे के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की समीक्षा कराए जाने का फैसला किया. ये स्कूल पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार के दौरान खोले गए हैं. दिलावर की अपने फैसले के पक्ष में दलील है, "केवल भवन पर नाम लिख देने से वह विद्यालय नहीं हो जाता, जब तक उसमें पढ़ाने वाले अच्छे शिक्षक और पढ़ाई के लिए भवन न हो."
राजस्थान में महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोलने वाले पूर्व शिक्षा मंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दिलावर के इस बयान पर पलटवार करते हैं. उनका कहना है, "स्टाफ, भवन या अन्य सुविधाओं का हवाला देकर इन स्कूलों को बंद नहीं किया जा सकता क्योंकि ये सुविधाएं उपलब्ध कराना तो सरकार की जिम्मेदारी है. सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए गरीब बच्चों के अंग्रेजी पढ़ने का हक नहीं छीन सकती."
इन स्कूलों पर शिक्षा मंत्री का बयान आने के साथ ही राजस्थान के शिक्षा विभाग ने चार पन्ने का एक सर्कुलर तैयार कर इन स्कूलों की समीक्षा कराए जाने का फरमान जारी कर दिया. इसके जरिए जिला और उपखंड स्तर पर संचालित महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की उपयोगिता, भवन और स्टाफ की स्थिति, हिंदी माध्यम स्कूल से दूरी और हिंदी या अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई जैसी कई जानकारियां मांगी गई हैं. इनके आधार पर जिला शिक्षा अधिकारी यह रिपोर्ट तैयार करेंगे कि किस स्कूल को अंग्रेजी माध्यम में जारी रखा जाए और किसे फिर से हिंदी माध्यम में तब्दील कर दिया जाए.
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