
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव आंकड़ों और जीत-हार के अंतर से कहीं ज्यादा नए तरह के राजनैतिक मेल पर एक जनमत संग्रह था. दरअसल, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के दो फाड़ होने के बाद यह पहला ऐसा चुनाव था, जिसे यह तय करने के लिहाज से अहम माना जा रहा था कि किस गुट को 'असली' शिवसेना और 'असली' एनसीपी का दर्जा मिलना चाहिए. इस पर भी फैसला होना था कि लोकतांत्रिक ढंग से बनी सरकार को गिराकर तोड़फोड़ और दलबदल के जरिए सरकार बनाने को जनता ने कितनी स्वीकृति दी.
नतीजों से तो यही लगता है कि मंजूरी मिली नहीं, उत्तर प्रदेश के बाद दूसरी सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों (48) वाले राज्य में महाविकास अघाड़ी (एमवीए)-जो इंडिया ब्लॉक का हिस्सा है-ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं, राज्य में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के महागठबंधन यानी महायुति को महज 17 सीटें मिलीं. एक सीट पर कांग्रेस का बागी प्रत्याशी जीता है. लोकसभा चुनाव के इन नतीजों ने विपक्षी एमवीए में जोश भर दिया है जिससे इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इसकी स्थिति मजबूत हो गई है. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे/यूबीटी) के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, "हमारे लिए तो यह जीत जैसी स्थिति है. एक क्षेत्रीय पार्टी के नाते लोकसभा चुनावों में ज्यादा भागीदारी की गुंजाइश कम है. हमारी असली लड़ाई विधानसभा के लिए है. लोकसभा चुनावों के नतीजे हमारे लिए मनोबल बढ़ाने वाले साबित होंगे और साथ ही शिंदे गुट में टूट की संभावनाएं बढ़ाएंगे."
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