प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 10 साल के दौरान अक्सर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के विकास की बात करते रहे हैं. हाशिए पर पड़ा यह इलाका बुनियादी ढांचे और सामाजिक-आर्थिक तरक्की के मामले में पिछड़ा हुआ है. भाजपा के दिग्गज नेता केंद्र में पिछली सरकारों की राजनैतिक उदासीनता को इसके लिए दोषी ठहराते हुए कभी भी यह बताने का मौका नहीं चूकते कि प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपने सभी पूर्ववर्तियों की संयुक्त यात्राओं के मुकाबले पूर्वोत्तर की कहीं अधिक यात्राएं कीं.
फिर भी जब मणिपुर एक साल से ज्यादा समय तक जातीय हिंसा में घिरा रहा, जिसमें 200 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और 60,000 लोग विस्थापित हो गए, तो प्रधानमंत्री ने भाजपा शासित इस हिंसाग्रस्त राज्य का एक बार भी दौरा नहीं किया. उन्होंने इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ने में दो महीने से ज्यादा का वक्त लगा दिया.
इसके विपरीत, विपक्षी कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और पीड़ितों के साथ वक्त बिताया. पार्टी की युवा शाखा के प्रमुख श्रीनिवास बी. वी. ने राज्य का नियमित दौरा किया और राहत सामग्री वितरित की. इस साल की शुरुआत में राहुल की अगुआई में मणिपुर से भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरुआत की गई थी. लोकसभा चुनाव में यह प्रयास रंग लाया.
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