तिनकों में उम्मीद की तलाश
India Today Hindi|August 21, 2024
लगता है सड़क भी उस 'मौत की घाटी' तक जाने से डर रही है. मॉनसूनी बारिश ल की उस रौंदती रफ्तार और पहाड़ों के मलबे से दो गांवों मुंडाक्की और चूरलमाला को बहे 10 दिन बीत चुके हैं. अब सिर्फ बाकी बची हैं तो यादें, वीडियो और क्षत-विक्षत मानव अंग. कोझिकोड से हेयरपिन बैंड यानी तीखे मोड़ वाली सड़कों से होते हुए जब वायनाड के प्रशासनिक मुख्यालय कलपेट्टा तक पहुंचेंगे तो उसके आगे कुछ नहीं मिलेगा. 21 किलोमीटर तक केवल एंबुलेंस और पुलिस गाड़ियों की हलचल है. मेप्पाडी के आगे आपको पुलिस चेक पॉइंट मिलेगा जहां आपको पता चल जाएगा कि यहां इमरजेंसी का वक्त अभी खत्म नहीं हुआ है. 152 लापता लोगों की तलाश में यहां अभियान चल रहा है.
जीमॉन जैकब
तिनकों में उम्मीद की तलाश

सड़क किनारे के कुछ टूटे हुए संकेतकों के सिवा इन दोनों गांवों की अब कोई पहचान नहीं बची है. अब यह कीचड़ का हिस्सा है, किसी भूरी मोटी लाइन जैसा, जो पंचीरीमात्तोम से नीचे की ओर पूरी तलहटी में बहता है. यह पहले भूस्खलन का केंद्र था. 29 जुलाई की आपदा में आधिकारिक तौर पर 224 लोगों के मारे जाने का दावा किया गया है, जिनमें 88 महिलाएं और 37 बच्चे शामिल हैं. मौतों का गैर-सरकारी आंकड़ा 500 से ऊपर है. अभी तक सिर्फ 172 शवों की पहचान की जा सकी है जबकि करीब 180 के शरीर के अंग दावेदारों का इंतजार कर रहे हैं.

छह अगस्त को करीब 35 अज्ञात शव और 154 शारीरिक अंगों को सर्वधर्म प्रार्थना के बाद तुमला में दफनाया गया. यह वही जगह है जहां अगस्त 2019 में हुए भूस्खलन में पांच लोग मारे गए थे. शव और शरीर के अंग अलग-अलग में रखे गए हैं. जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती तब तक उनको डीएनए पहचान संख्या दी गई है. अधिकारी बताते हैं, ऐसा इसलिए कि रिश्तेदार बाद में अगर चाहें तो इन अवशेषों पर दावा कर सकते हैं.

राज्य के वित्त मंत्री के. एन. बालगोपाल ने इंडिया टुडे को बताया, "हम केरल के इतिहास में महादुखद और तबाही के पलों से गुजर रहे हैं. वायनाड में दो गांव कब्रगाह में तब्दील हो गए हैं. पहली प्राथमिकता तलाशी और बचाव अभियान जारी रखने की है. साथ ही हम लोगों की मदद से पीड़ितों के व्यापक पुनर्वास की योजना बना रहे हैं." मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष (सीएमडीआरएफ) को दान के रूप में 500 करोड़ रु. से अधिक पहले ही मिल चुके हैं. विस्तृत वैज्ञानिक योजना तैयार की जा रही है ताकि पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों की बसावटों में भविष्य में किसी भी तरह की आपदा को टाला जा सके.

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