कौन सुने फरियाद
India Today Hindi|August 21, 2024
दरअसल, कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पिछले महीने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर लोकोमोटिव पायलटों के एक रनिंग रूम, या रेस्टरूम का दौरा किया और उनके कामकाज के हालात की पड़ताल की.. उसके बाद कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर सवाल पूछा, "क्या लोको पायलट इंसान नहीं हैं?" राहुल गांधी ने खुद भी उनके "क्या 16 घंटे" के कार्यदिवस और "बेहद गर्म" केबिनों के बारे में बात की. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 1 अगस्त को संसद में बजट चर्चा के दौरान आंकड़ों के साथ पलटवार किया.
अभिषेक जी. दस्तीदार
कौन सुने फरियाद

मंत्री ने कहा कि देशभर में 558 रनिंग रूम वातानुकूलित किए गए हैं और 7,000 ट्रेन इंजन कैब में अब एसी हैं. विडंबना ही है कि न तो मंत्री, न ही विपक्ष ने महिला लोको पायलटों की उन शिकायतों के बारे में कोई चर्चा की जिनको वे वर्षों से उठा रही हैं. और वे मसले हैं, लोकोमोटिव में शौचालय और रनिंग रूम में महिलाओं के लिए अलग चेंजिंग रूम और वॉशरूम सरीखी बुनियादी सुविधाओं की कमी. फिलहाल राजस्थान में कार्यरत और 18 साल से नौकरी कर रहीं एक महिला लोको पायलट बताती हैं, "हमें अक्सर स्टेशनों पर कपड़े बदलने के लिए भी सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करना पड़ता है."

एक 26 वर्षीया महिला सहायक लोको पायलट ने इंडिया टुडे को बताया कि वे ड्यूटी के दौरान घंटों पानी नहीं पीतीं और उन्हें वयस्कों का डायपर पहनना पड़ता है. यह इतना तनाव भरा है कि उन्हें चार वर्ष पूर्व यह "अच्छी तनख्वाह वाली सरकारी नौकरी" स्वीकार करने पर पछतावा है.

दिल्ली में रहने वाली इस सहायक लोको पायलट को 35,000 रुपए का मासिक वेतन मिलता है और उसमें लोकोमोटिव में बिताए गए घंटों की संख्या के आधार पर उनके मूल वेतन का 30 फीसद 'रनिंग भत्ता' भी शामिल होता है. नौकरी में आगे बढ़ने और साल बीतने के साथ-साथ पैसा भी बढ़ता है. यह लोको पायलट जोर देकर कहती हैं, “मगर, अगर मुझे पता होता कि उनके पास (रेलवे) महिला कर्मचारियों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं तो मैं यह नौकरी नहीं करती."

Denne historien er fra August 21, 2024-utgaven av India Today Hindi.

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