आकार में बड़ी दिखने वाली चीज हमेशा खूबसूरत हो, जरूरी नहीं. 58,000 से ज्यादा संस्थाओं और 4.30 करोड़ छात्रों के साथ भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में से 'एक है. मगर हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के बारे में धारणा कुल मिलाकर खराब है और हमारी संस्थाएं निम्न गुणवत्ता वाले रोगों से ग्रस्त हैं. इन कमियों को दूर करने के लिए व्यवस्थागत बदलाव पर जोर देने वाले त्रिआयामी नजरिए की जरूरत है. इसके बिना भारत वैश्विक शिक्षा का केंद्र नहीं बन सकता; इस क्षेत्र में दुनिया हमारे प्रति आकर्षित हो, इसके लिए जरूरी है कि हम स्थानीय स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाला केंद्र बने.
फिलहाल, शिक्षा की गुणवत्ता में भारी झोलझाल है. आइआइटी और आइआइएम सरीखे प्रतिष्ठित सरकारी संस्थान और अशोका यूनिवर्सिटी और आइएसबी सरीखे निजी संस्थान ऊंचे मानकों को बनाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं, तो वहीं ज्यादातर कॉलेज और विश्वविद्यालय पुराने ढर्रे के पाठ्यक्रम, नाकाफी बुनियादी ढांचे और आधे-अधूरे ज्ञान वाले शिक्षकों से जूझते रहते हैं. गैरबराबरी के इस मैदान की वजह से हजारों छात्र खराब ढंग से शिक्षित और असल दुनिया के लिए बुरे तरीके से तैयार हो जाते हैं. ऐसे में जिंदगी में गैरबराबरी भी बनी रहती है.
Denne historien er fra August 28, 2024-utgaven av India Today Hindi.
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