सरकार का दावा है कि यह कदम मदरसों को ज्यादा दक्ष बनाने के मकसद से उठाया गया है. वहीं मदरसे इसे उन्हें कमजोर करने और जनता के मन में उनके कामकाज के प्रति शक पैदा करने की कोशिश बता रहे हैं.
मदरसों पर 'कार्रवाई' तब शुरू हुई जब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने बीते साल राज्य सरकार को पत्र लिखकर पूछा कि क्या मदरसों में हिंदू बच्चों को उनके माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध दाखिले दिए गए हैं, जैसा कि उनके ध्यान में लाया गया है. मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड के एक अधिकारी कहते हैं, "हिंदू बच्चों के मदरसों में पढ़ने पर रोक नहीं है, मगर उन्हें अन्य सभी छात्रों की तरह दाखिला लेने से पहले माता-पिता/अभिभावक की मंजूरी लेनी होती है."
राज्य सरकार के 16 अगस्त के निर्देश में जिला कलेक्टरों से मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड में पंजीकृत सभी मदरसों का मुआयना करने और गैर-मुस्लिम छात्रों के माता-पिता की मंजूरी के अलावा बुनियादी ढांचे, छात्रों के नामांकन और शिक्षकों की उपलब्धता के बारे में जांच करने को कहा गया. उसमें यह भी कहा गया कि मदरसों में छात्रों के रिकॉर्ड की जांच करके पता लगाएं कि सभी मदरसों को मिलने वाले सालाना सरकारी अनुदान हासिल करने की गरज से छात्रों के फर्जी नाम तो दर्ज नहीं किए गए हैं. आदेश कहता है कि दोषी मदरसों की मान्यता रद्द कर दी जाएगी. कुछ हफ्ते पहले श्योपुर जिले के 56 मदरसे विभिन्न मानदंडों के अनुपालन में लापरवाही बरतते पाए गए थे; उन्हें मान्यता रद्द करने के नोटिस दिए गए हैं.
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