मणिपुर देश के लोगों के जेहन से अभी पूरी तरह उतर भी नहीं पाया था कि सितंबर की बर्बर घटनाओं ने यह कड़वी सच्चाई फिर सामने ला दी कि संकटग्रस्त राज्य में स्थिति कितनी नाजुक बनी हुई है. महीने के पहले दिन ही राज्य भीषण हिंसक झड़पों का गवाह बना और इस बार आमने-सामने थे - कुकी- जो सशस्त्र समूह और सुरक्षा बलों के जवान. यह सब उस तनावपूर्ण सीमा पर घटा जो मैतेई बहुल इंफाल पश्चिम और कुकी बहुल कांगपोकपी जिलों को बांटती है. अगले कुछ दिनों में इन समुदायों के गुटों के बीच हिंसक झड़पों ने जिरीबाम और बिष्णुपुर जैसे इलाकों को अपनी चपेट में ले लिया, जिसमें कम से कम सात लोग मारे गए. जिरीबाम वह जगह है, जो हाल में मैतेई और हमार नेताओं (बड़ी हिस्सेदारी वाले कुकी-जो समुदाय का एक गुट) के बीच शांतिवार्ता के प्रमुख स्थलों में से एक बना, और ताजा हिंसा ने उसे भी जंग के मैदान में तब्दील कर दिया. इस हिंसा के दौरान कुकी विद्रोहियों की तरफ से कथित तौर पर हथियारबंद ड्रोन और रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनेड जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया जाना दर्शाता है कि यह संघर्ष नए और खौफनाक दौर में पहुंच चुका है (देखें, 'मणिपुर में उड़ते खतरे...').
ताजा घटनाएं यही दर्शाती हैं कि मणिपुर में पिछले साल 3 मई को भड़के सामुदायिक संघर्ष के पहले चरण की भयावहता एक बार फिर नई ताकत से उभर आई है. इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, अस्त्रागार लूट लिए गए हैं, और सड़कों पर प्रदर्शनकारियों की भीड़ उमड़ पड़ी है. दरअसल, कुकी समुदाय के आर्थिक विशेषाधिकारों को मैतेई लोगों को भी उपलब्ध कराने संबंधी एक अदालती आदेश को लेकर मैतेई और कुकी के बीच शुरू हुई तनातनी अब और भी ज्यादा गहरा गई है.
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