राजनीति दुश्मनों को भी दोस्त बना सकती है. और अगर यह चुनाव का मौसम हो तो इस तरह की पहल ज्यादा जाती है. टोहाना के धूल भरे कस्बे में गृह मंत्री अमित शाह ने 23 सितंबर को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की रैली को संबोधित करते हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए इसी तरह का लहजा दिखाया. उनके भाषण में पार्टी के केंद्र और राज्य दोनों जगह एक दशक के शासन के दौरान किए गए कामों का भी जिक्र था. फिर भी, जिस बात ने हर किसी का ध्यान खींचा, वह यह थी कि उन्होंने कांग्रेस की प्रतिद्वंद्वी नेता - सिरसा की सांसद और पार्टी का दलित चेहरा - कुमारी शैलजा को लेकर चिंताएं जाहिर कीं.
शैलजा ने मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने की अपनी महत्वाकांक्षाओं को छिपाया नहीं है और वे अपने लिए तथा अपने 35 वफादारों के लिए टिकट मांग रही थीं लेकिन सिर्फ 13 को ही टिकट मिला और उनमें भी उनका खुद का नाम नहीं था. तब से ही, यह पूर्व केंद्रीय मंत्री चुनाव अभियान काफी हद तक दूर ही रहीं. यहां तक कि वे 18 सितंबर को पार्टी के दिल्ली मुख्यालय में कांग्रेस का घोषणापत्र जारी किए जाने के समय भी वे मौजूद नहीं थीं. उनके घावों पर नमक छिड़कते हुए एक पार्टी उम्मीदवार के समर्थकों - जो कट्टर प्रतिद्वंद्वी भूपेंद्र सिंह हुड्डा का वफादार है, ने कथित तौर पर उनको निशाना बनाते हुए जातीय टिप्पणियां कीं. ये टिप्पणियां हिसार के नारनौंद में नामांकन भरने के दौरान की गईं. टोहाना में रैली को संबोधित करते हुए शाह ने तुरंत ही इन घटनाओं को "दलित की बेटी" का अपमान और कांग्रेस को "दलित विरोधी" पार्टी बताया. यह उसके बाद हुआ जब केंद्रीय मंत्री और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दावा किया कि भाजपा कांग्रेस सांसद के लिए "पेशकश के साथ तैयार" है. मगर शैलजा ने उसी शाम आज तक के एक कार्यक्रम में इस तरह की अटकलों को खारिज कर दिया. हालांकि उन्होंने "चोट पहुंचने" की बात कुबूल की - यह संकेत बताता है कि कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है.
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