दरअसल, मेजर जनरल प्रबोध चंद्र पुरी (सेवानिवृत्त) के लिए उस दिन को भुला पाना नामुमकिन है. वह 15 अक्तूबर का दिन था. रोज की तरह 83 वर्षीय इस बुजुर्ग के लिए दिन शांति से बीत रहा था तभी हरियाणा के पंचकूला स्थित उनके घर पर फोन की घंटी बज उठी. दूसरी ओर से एक अधिकारी की आवाज आई - कड़क, सधी हुई और रौबदार. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का वरिष्ठ अधिकारी होने का दावा करने वाले कॉलर ने पुरी से कहा कि उनका मोबाइल नंबर एक बड़े वित्तीय घोटाले में सामने आया है. "अपनी इज्जत बचाने " और तत्काल जेल जाने से बचने के लिए, उन्हें जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया गया. उसके बाद 48 घंटे तक उन्हें खौफनाक अनुभव से गुजरना पड़ा. पुरी को वीडियो कॉल का सामना करना पड़ा, जो असली सरकारी कार्यालय से आया लग रहा था. घोटालेबाजों की चाल बेहद भयावह थी-नजारा एकदम कोर्टरूम जैसा लग रहा था, जिसमें वे धोखेबाज जज, पुलिस अधिकारी और प्रवर्तन एजेंट की भूमिका निभा रहे थे. एकदम असली नजर आ रहे सरकारी दस्तावेजों के साथ वायरलेस की आवाजें भी सुनाई दे रही थीं. हैरान-परेशान पुरी ने कई बैंक खातों में किस्तों में 82.27 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए. उन्हें बताया गया कि यह रकम उनके नाम को क्लियर करने के लिए "बाद में लौटा दी जाने वाली सुरक्षा जमा राशि " है. जब तक उन्हें सच का पता चला, तब तक घोटालेबाज लापता हो चुके थे, और पुरी आर्थिक रूप से बर्बाद हो चुके थे.
Denne historien er fra December 04, 2024-utgaven av India Today Hindi.
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