सितंबर के मध्य में केंद्र सरकार ने गिर वन्यजीव अभयारण्य (जीडब्ल्यूएस) के इर्द-गिर्द ईको सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) या पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के लिए मसौदा अधिसूचना जारी की. पहले जीडब्ल्यूएस के 1,468.16 वर्ग किमी मूल क्षेत्र के आसपास 0-10 किमी का दायरा बफर जोन माना जाता था, जहां भारी उद्योग लगाने और खनन की मनाही थी. संशोधित मसौदे में इस इलाके को छोटा कर दिया गया है - कुछ जगहों पर अभयारण्य से न्यूनतम 2.78 किमी और अन्य जगहों पर अधिकतम 9.5 किमी.
मसौदे में गिर के आसपास के 2,061 वर्ग किमी इलाके को ईएसजेड बनाने की पेशकश की गई है. यह इलाका जूनागढ़, अमरेली और गिर सोमनाथ जिलों के 196 गांवों तक फैला है, जिसके दायरे में 17 नदियां, 24,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र और 1.59 लाख हेक्टेयर गैर-वन क्षेत्र भी आते हैं. सरकारी बयान कहता है कि इस संरक्षित क्षेत्र में एशियाई शेरों के एकमात्र वासस्थान में उनके चार अहम आवागमन गलियारे भी हैं. एक स्थानीय प्रकृतिवादी का अनुमान है कि इस ईएसजेड में पहले के बफर जोन के मुकाबले करीब 38 फीसद इलाका कम है. मगर हजारों स्थानीय ग्रामीणों के लिए यह भी बहुत ज्यादा है. उन्हें डर है कि ईएसजेड में लागू की गई पाबंदियों और सख्ती के कारण वे आजीविका और विकास से हाथ धो बैठेंगे. जंगली जानवरों से अपने को बचाने के अधिकार का मुद्दा भी है.
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