आर्थिक उदारीकरण, 1991
वर्ष 1991 के आर्थिक उदारीकरण को व्यापक रूप से भारत में आजादी के बाद सबसे महत्वपूर्ण सुधारों रूप में देखा जाता है. जिन वजहों से उदारीकरण की शुरुआत हुई, वे बहुत गंभीर थीं. 1990 में भारत बेतहाशा उधारी और भारी खर्च के कारण पैदा हुए भुगतान संतुलन (बीओपी) संकट की गंभीर चुनौती का सामना कर रहा था. भुगतान संतुलन किसी एक अवधि में एक देश में आने वाले और वहां से जाने वाले भुगतान के कुल मूल्य में अंतर को कहा जाता है. वी. पी. सिंह सरकार ने जब 1989 में सत्ता संभाली तो उसे पिछली राजीव गांधी सरकार से घाव की मानिंद समस्याएं विरासत में मिलीं लेकिन वह उचित कदम उठाने में नाकाम रही. भारतीय योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया लिखते हैं, "वह (वीपी सिंह) सरकार जब आई तो उस समय विदेशी मुद्रा भंडार महज 3.6 अरब डॉलर या उस साल में 8 सप्ताह के आयात करने लायक था." उन्होंने अपनी किताब बैकस्टेज: द स्टोरी बिहाइंड इंडियाज हाइ ग्रोथ ईयर्स में लिखा, "नवंबर 1990 में जब उन्होंने सत्ता छोड़ी, तो मुद्रा भंडार गिरकर 1.9 अरब डॉलर रह गया था जिससे महज तीन सप्ताह ही आयात हो सकता था."
इंडिया टुडे के पन्नों से
अंकः 15 अगस्त, 1991
आवरण कथाः लाइसेंस राज के खात्मे की शुरुआत
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