मंडल आयोग रिपोर्ट लागू, 1990
जब दिल्ली के देशबंधु कॉलेज के युवा छात्र राजीव गोस्वामी ने दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग या मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के तब के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के फैसले के विरोध में 19 सितंबर, 1990 को आत्मदाह करने की कोशिश की तो वह दुखद कदम देश में विरोध का प्रतीक बन गया और उसने देश के सामाजिक ताने-बाने की भंगुरता को उजागर कर दिया.
1979 में मोरारजी देसाई सरकार की ओर से गठित इस आयोग के अध्यक्ष बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल थे. आयोग ने केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 फीसद आरक्षण का प्रस्ताव किया. यह रिपोर्ट 11 साल तक गुमनाम पड़ी रही. वी. पी. सिंह ने उसे इतिहास के कूड़ेदान से निकाला और 7 अगस्त, 1990 को लागू करने का ऐलान कर दिया.
कुछ लोगों की नजर में यह लंबे समय से प्रतीक्षित सामाजिक न्याय की दिशा में कदम था, दूसरे लोगों ने इसे पिछड़ी जातियों के समर्थन को एकजुट करने के लिए खुला राजनैतिक जुआ करार दिया. लेकिन इस घोषणा के विरोध में संपन्न जातियों के लोगों की घोर जवाबी प्रतिक्रिया हुई. उन्होंने आरक्षण व्यवस्था में इसे अपने अवसरों के कम होने के रूप में देखा. दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम केंद्र मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले में पिछड़ी जातियों के लिए 27 फीसद आरक्षण को बरकरार रखा, आरक्षण पर 50 फीसद की सीमा जड़ दी और 'मलाईदार तबके' की अवधारणा लागू कर दी.
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