
भा रत लगातार आगे बढ़ रहा है लेकिन यह यात्रा देश के दूरदराज इलाकों बन रहे बुनियादे ढांचे के बिना मुमकिन नहीं हो सकती. हालांकि बुनियादी ढांचे का मतलब सिर्फ सड़क या पुल नहीं है.
इसमें कोई निर्माण इकाई शामिल हो सकती है, एक स्कूल या फिर कोई म्यूजियम भी ! इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2025 के सत्र 'बनेगा तो बढ़ेगा इंडिया' में इन्हीं बुनियादी ढांचों से जुड़ी तीन शख्सियतों ने शिरकत की.
इस सत्र में शामिल हुईं शेख रजिया की कहानी इस मायने में बेहद खास है कि उन्होंने सुदूर बस्तर इलाके में लघु वनोपज, इसमें भी महुआ, जो 'दारू' बनाने के काम में आने वाले फल के रूप में बदनाम है, की अपनी एक फूड प्रोसेसिंग यूनिट बनाई. अब वे इस फल को लंदन तक निर्यात करती हैं जहां उनके एक अन्य साझेदार इससे बने उत्पादों को यूरोप और अमेरिका तक पहुंचाते हैं.
आज शेख रजिया की कंपनी 'बस्तर फूड्स' ऊंची उड़ान भरती दिखती है. ऐसा होने की वजहें भी हैं क्योंकि इसकी स्थापना में जमीनी प्रेरणा और समझ का भरपूर खाद-पानी है. नक्सल प्रभावित इलाके से आने वाली शेख रजिया ने सत्र में बताया, "छत्तीसगढ़ का बीजापुर नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. मैं इस इलाके में काम करती थी. एक बार यहीं एक लड़के ने कहा कि हम स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अगर नक्सलवादियों से जुड़ जाएं तो महीने के 20 हजार रुपए कमा सकते हैं. ' " रजिया को इस बात ने गहरे तक प्रभावित किया और उन्होंने सोचा कि क्यों न ऐसा कुछ किया जाए ताकि ऐसे सभी लड़के-लड़कियों को रोजगार मिल सके और उन्हें यह भी सिखायाबताया जा सके कि पढ़-लिखकर सिर्फ सरकारी नौकरियों पर निर्भर रहने के बजाए अपना भी कुछ काम-धंधा शुरू किया जा सकता है. इसी सोच पर आगे चलकर उन्होंने 2017 में बस्तर फूड्स की स्थापना की.
Denne historien er fra March 26, 2025-utgaven av India Today Hindi.
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