लोकतंत्र की सर्वोच्च नीति निर्धारण करने वाली संस्था "संसद के मनमंदिर" के उद्घाटन में भी "नीति" नहीं "दलगत राजनीति !
Open Eye News|May 2023
सर्वोच्च शक्ति प्राप्त ऐसी संसद का भवन या सबसे बड़ा 'मन' "मंदिर" जहां मन मोहने वाले वातावरण में बैठकर देश के सांसद देश के लिए भी जनता के मन को भाने वाले कानून बना पाएंगे, जो 862 करोड़ रुपए से अधिक की लागत से 21वीं सदी की समस्त आधुनिक सुविधाओं से युक्त भविष्य के अगले 100 वर्ष की आवश्यकताओं की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए भव्यतम भवन बना है। इसका उसका उद्घाटन 28 तारीख को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों होना है। देश की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि और खुशी के बीच दुर्भाग्यवश अधिकतर विरोधी पक्ष जिसमें कांग्रेस के नेतृत्व में 21 पार्टियां शामिल है, ने उद्घाटन का विरोध करने का मजबूत डंडा (झंडा नहीं) गाड़ दिया है। विपरीत इसके एनडीए के 16 दलों के नेताओं ने विपक्षी दलों से अपने रुख पर पुनर्विचार करने का लिखित अनुरोध किया है।
राजीव खण्डेलवाल
लोकतंत्र की सर्वोच्च नीति निर्धारण करने वाली संस्था "संसद के मनमंदिर" के उद्घाटन में भी "नीति" नहीं "दलगत राजनीति !

संविधान का अनुच्छेद 60 और 111 का सहारा लेकर विपक्षी दलों द्वारा यह कहा जा रहा है कि लोकतंत्र के इस मंदिर का उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए। जबकि वास्तव में इन दोनों अनुच्छेद का उद्घाटन अथवा उसकी प्रक्रिया से कोई लेना देना नहीं है। अनुच्छेद 60 राष्ट्रपति द्वारा शपथ का उल्लेख करता है, तो अनुच्छेद 111 किसी विधेयक में राष्ट्रपति की स्वीकृति का उल्लेख करता है । तथापि अनुच्छेद 79 में यह अवश्य कहा गया है की "भारत संघ" के लिए संसद होगी जिसमें "राष्ट्रपति" और दो सदन शामिल होंगे। संसद या विधान सभा के भवनों के उद्घाटन के संबंध में क्या संवैधानिक कानूनी स्थिति है, अथवा अभी तक की क्या परिपाटी रही है, इसको यदि आप समझ लेंगे, तब ही आप समझ पाएंगे की प्रधानमंत्री द्वारा किए जाने वाले संसद भवन की उद्घाटन की स्थिति कितनी जायज अथवा नाजायज है? निश्चित रूप से अनुच्छेद 87 के अनुसार राष्ट्रपति संसद की दोनों सदनों को आहूत कर सत्र के पहले दिन संबोधित करता है। इसलिए वह सदन के नेता के रूप में श्रेष्ठतम प्रधानमंत्री की तुलना में उच्चतम स्थिति में है। परंतु साथ में इस बात को भी आपको ध्यान में रखना होगा कि राष्ट्रपति दोनों सदनों में से किसी के भी सदस्य नहीं होते हैं, जबकि प्रधानमंत्री का होना अनिवार्य है। (अपवाद स्वरूप छः महीने की अवधि को छोड़कर) अत: जिस संसद के राष्ट्रपति सदस्य नहीं है, उसके भवन का उद्घाटन उनसे न कराने से राष्ट्रपति की गरिमा गिरती, जैसा कि विपक्ष का आरोप है, यह तथ्यात्मक और संवैधानिक दोनों रूप से उचित नहीं जान पड़ता है।

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