अविभाजित आंध्र प्रदेश से अलग हुए तेलंगाना का यह तीसरा ही विधानसभा चुनाव है। पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और अब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के दिग्गज के. चंद्रशेखर राव एक मायने में राज्य के संस्थापक मुख्यमंत्री हैं। हालांकि यूपीए सरकार के दौर में तब की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल से बने इस राज्य में पार्टी मुगालते में दोनों ही राज्यों में अपना आधार खो बैठी, जबकि उसके पहले तक वही सरकार में थी और राज्य में उसकी गहरी पैठ थी। कांग्रेस नेताओं का तो यह भी कहना है कि पुराने कांग्रेसी चंद्रशेखर राव ने फिर कांग्रेस में आ जाने का वादा किया था लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाएं आड़े आ गईं। चंद्रशेखर राव ने करीने से अपनी बिसात बिछाई और लोगों को अपनी कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों से दो चुनावों तक बांधे रखा, लेकिन इस बार ऐसे संकेत हैं कि कांग्रेस अपने इस गढ़ को वापस पाने की लड़ाई शिद्दत से लड़ रही है।
तकरीबन छह महीने पहले तक राज्य में कांग्रेस को कोई चुनौती नहीं माना जा रहा था। उससे ज्यादा असर भाजपा का बताया जाने लगा था और कहा जा रहा था कि बीआरएस को टक्कर भाजपा से मिलेगी। वहां तीसरा पक्ष हैदराबाद के आसपास वाले इलाके में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम है, जो बीआरएस की साझेदार है। राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा में उमड़े जनसैलाब से उत्साहित होकर युवा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष वी. रेवंत रेड्डी ने प्रदेश में पैदल यात्राएं कीं और इस साल कर्नाटक विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत ने वाकई कांग्रेस का नैरेटिव बदल दिया।
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