कर्पूरी ठाकुर के जन्मशती वर्ष में जनवरी 2023 से लेकर अभी तक अलग-अलग जगह बहुत कार्यक्रम हुए। लेकिन मुख्यधारा मीडिया में उनका कवरेज न के बराबर था। सोशल मीडिया पर जरूर कुछ कार्यक्रमों की जानकारी थी। कर्पूरी ठाकुर की शख्सियत, राजनीति और विचारधारा का विवेचन करने वाले लेख और टिप्पणियां भी सोशल मीडिया और लघु पत्रिकाओं में ही प्रकाशित हुए। लेकिन भारतीय जनता पार्टी-नीत एनडीए सरकार ने जैसे ही कर्पूरी ठाकुर के जन्मशती वर्ष की समाप्ति पर मरणोपरांत उन्हें भारत-रत्न देने की घोषणा की, वे मुख्यधारा मीडिया में 'समाजवादी आइकान' बन गए !
अंग्रेजी अखबारों ने बढ़-चढ़ कर उनके बारे में रिपोर्ट, लेख और संपादकीय प्रकाशित किए। सरकार के इस औचक फैसले पर कई नेताओं और पार्टियों की प्रतिक्रियाएं भी मीडिया का विषय बनीं। इन सब में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले के पीछे सरकार की 'राजनीति' का उल्लेख और अनुसंधान हुआ। कहा गया कि सरकार ने विपक्ष की जाति-जनगणना के कार्ड को भोथरा करने के लिए भारत-रत्न का दांव चला है। यानी राम मंदिर निर्माण और उद्घाटन के साथ लबालब भरे 'कमंडल' में 'मंडल' को डुबोने का करतब कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर किया गया है। उन्हें भारत रत्न देकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ/भाजपा 'सिद्ध' करना चाहते हैं कि 'हिंदुत्व' और सामाजिक न्याय में कोई विरोध नहीं है। हालांकि, यह सरकार का एक चुनावी पैंतरा-भर है, क्योंकि केंद्र सरकार ने पूरे जन्मशती वर्ष के दौरान याद करने की भी जहमत नहीं उठाई।
भारत-रत्न की राजनीति ने बिहार की महागठबंधन सरकार को भी चपेट में ले लिया है। वहां कर्पूरी ठाकुर की 'विरासत के दावेदारों' में घमासान हो गया है। अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के 'इंजीनियर' नीतीश कुमार ने यह कहते हुए कि “ठाकुर ने कभी परिवारवादी राजनीति नहीं की", राजद की परिवारवादी राजनीति पर तंज कस दिया। साथ ही “मैंने खुद भी कभी अपने परिवार को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया" कह कर खुद को कर्पूरी ठाकुर का असली वारिस भी जता दिया। वारिस होने की दावेदारी की मजबूती के लिए उन्होंने यह भी कह डाला कि उन्होंने कर्पूरी के बेटे रामनाथ ठाकुर को राज्यसभा का सदस्य बनाया। उन्होंने भाजपा को भी संदेश दे दिया कि ईबीसी वोटों पर उन्हीं का पेटेंट है!
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