उनकी इस पुस्तक में गायिका रेशमा, में प्रमुख कवि त्रिलोचन-विष्णु खरे, चित्रकार सूरज घई-महिंदर सिंह, पत्रकार राधेश्याम यादव-अनंत डबराल, संपादक प्रभाष जोशी-जगदीश चंद्र, कथाकार क्षितिज शर्मा, नाटककार राजेन्द्र पांडे, आलोचक डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल, सिनेमा को समर्पित अनिल साहरी तथा रनिंग कमेंट्री के बादशाह मेलविल डिमेलो जैसी प्रतिभाओं को जिस तटस्थता और आत्मीयता से याद किया गया है वह काबिल-ए-जिक्र है। कुश्ती-कला के दो विख्यात गुरुओं को भी उनकी गरिमा और आभा के अनुरूप याद किया गया है। इस नाते इस संपूर्ण रचनाशीलता को यादों का एल्बम भी कहा जा सकता है।
रेशमा के तनहाई भरे गायन को लेखक बड़ी ही स्पर्शी भाषा में इस प्रकार व्यक्त करता है। “कोई-कोई सुर दरवेशी-रंग लेकर आता है और वीराने में नया जीवन रचता है। वीराने में ही सधी-फूटी आवाज में बसी आत्मा की बरी (मुक्त) किलकारियां हीं। तेरह चौदह साल की बंजारन रही वही रेशमा और उसी ने वीराने के अलम (दुख) और तनहाई को गाया अपने मुक्त गीतों में।"
Denne historien er fra February 19, 2024-utgaven av Outlook Hindi.
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शहरनामा - हुगली
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