पद्म विभूषण आचार्य रामभद्राचार्य उर्फ गिरिधर मिश्र को संस्कृत में और गुलजार उर्फ संपूर्ण सिंह कालरा को उर्दू में इस बार प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया तो विवाद भी उभर आया। यूं तो प्रतिष्ठित पुरस्कारों के साथ विवाद कोई नई बात नहीं है और एक मायने में तरह-तरह की राजनीति के आरोप भी उठते रहते हैं, फिर भी इस बार कुछ ज्यादा ही हैरानी जताई गई है। बेशक, आचार्य रामभद्राचार्य के संस्कृत साहित्य में अवदान से अपरिचय कोई तर्क नहीं बनता है। वे भगवा पहनते हैं, रामकथा बांचते हैं, यह उनकी अयोग्यता नहीं हो सकती है। किसी के पेशे या आस्था से वैसे भी साहित्य में योगदान को जोड़कर नहीं देखा जाता है, न देखा जाना चाहिए। रामभद्राचार्य संस्कृत के रचनाकार हैं। कवि हैं। उनकी 80 से अधिक प्रकाशित पुस्तकें हैं। वे मनोनीत आचार्य नहीं हैं, अकादमिक आचार्य हैं। बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट हैं। संस्कृत व्याकरण में पीएचडी हैं।
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