वाकई 2024 के वैशाख में अठारहवीं लोकसभा चुनाव के पहले ही चरण (19 अप्रैल) में ऐसी हवा बहने लगी कि पिछले कई महीनों से तैयार किए गए जोरदार अफसाने दम तोड़ने लगे। दूसरे चरण (26 अप्रैल) के बाद, तो मानो नेताओं की बोलियां और रणनीतियां काल बैसाखी की तेजी से बदलने लगीं। इन बदलती बोलियों और रणनीतियों के बीच यह अहम है कि तीसरे चरण (7 मई) के मतदान के साथ कुल 543 संसदीय सीटों में तकरीबन आधे (पहले चरण में 102, दूसरे में 88 और तीसरे में 93 यानी 283 सीटें) ईवीएम मशीनें सील हो चुकी हैं। इस तरह बड़ी लड़ाई अब उत्तर, पश्चिम और पूरब के उन इलाकों में आ गई है, जहां से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और एनडीए को पिछले दो चुनावों 2014 और 2019 में मिले भारी बहुमत की अधिकांश सीटें हासिल हुईं। इन इलाकों में उसका मुकाबला कांग्रेस के अलावा ताकतवर क्षेत्रीय दलों से है, जिनके वोट बैंक में सेंध लगाकर या दलबदल तथा तोड़फोड़ के जरिए उसने अपना आधार व्यापक किया है। कांग्रेस से सीधे मुकाबले वाली 190 सीटों में वह पिछली बार 175 सीटें जीत गई थी। इस बार कांग्रेस की स्थिति में सुधार दिख रहा है, मगर कई अहम राज्यों में भाजपा अभी भी भारी लग रही है। इस तरह भाजपा के अजेय बताए जा रहे रथ को रोकने की जिम्मेदारी अब क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों पर आ गई है, जो सभी कांग्रेस के साथ ‘इंडिया’ ब्लॉक का हिस्सा हैं। दक्षिण के क्षत्रप, जिसमें कांग्रेस के क्षत्रप भी शामिल हैं, भाजपा की चुनौती को लगभग नाकाम करने में कामयाब रहे हैं। सो, इस बार बड़े राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के क्षेत्रीय दिग्गज मुकाबले के लिए कमर कसे हुए लग रहे हैं। और अपने साथ विपक्ष का मोर्चा भी मजबूत करते दिख रहे हैं।
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