मई के पहले हफ्ते की बात है। एक दिन तड़के लखनऊ के एक पुराने पत्रकार के पास पूर्वांचल से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक विधायक का फोन आया। विधायक इस बात से हैरान थे कि मुफ्त अनाज पाने वाले लोग अब पलट रहे हैं। पत्रकार ने जिज्ञासावश पूछ लिया, ‘मतलब?’ विधायक ने बताया कि पर्चा लीक के चलते भाजपा का ‘लाभार्थी’ वाला वोट अब आरक्षण के चक्कर में आ गया है और इस चुनाव में भाजपा को वोट नहीं देगा। सुनने में तो मुफ्त राशन, पर्चा लीक और आरक्षण तीन अलहदा बातें जान पड़ती हैं, लेकिन लोग उन्हें जोड़ कर अपने मायने निकाल रहे हैं। महानगरों में बैठ कर इसे समझना मुश्किल है क्योंकि ऐसी बातें केवल गांवों-कस्बों में चल रही हैं, वह भी दलितों और पिछड़ों के बीच। पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का औपचारिक गठबंधन भी दलितों और पिछड़ों के बीच चुनावी एकता कायम नहीं कर सका था, लेकिन इस बार स्थिति बिलकुल अलग है। दलित-पिछड़ा ‘केमिस्ट्री’ पर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन कहते हैं, ‘‘पिछली बार क्या हुआ भूल जाइए। उसके अलग कारण हैं। इस बार ‘केमिस्ट्री’ सवाल ही नहीं है। सवाल है कि संविधान को कैसे बचाया जाए। यह दलितों और पिछड़ों का साझा सवाल है। मुसलमान तो इसमें शामिल हैं ही।’’
आगरा में सांसद के आवास पर 2 मई की सुबह-सुबह जब हम यह संवाद कर रहे थे, वहां जुटे मजमे में बसपा के दो प्रधान सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रति अपनी वफादारी जताने आए थे। उनका स्पष्ट कहना था कि इस बार भाजपा को हराने के लिए गठबंधन को जिताना जरूरी है, बहनजी को बाद में देखेंगे।
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