अठारहवीं लोकसभा चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की मौजूदा राजनीति की शायद गुजरात के बनासकांठा से जीतने वाली गनीबेन ठाकोर की कहानी सबसे मुफीद है। हर सभा और लोगों से मेलजोल में वे कहती रहीं, न मेरे पास, न पार्टी के पास पैसे हैं। लोगों से मिले छोटे-छोटे चंदे के आधार पर चुनाव लड़ कर उन्होंने ऐसे वक्त में मिसाल कायम की है जब प्रचुर धनबल और बाहुबल के अलावा चुनाव लड़ पाना असंभव-सा हो गया है। गनीबेन को एक मायने में कांग्रेस के जमीनी मुद्दों की ओर लौटने का प्रतीक इसलिए भी मान सकते हैं कि उन्होंने न सिर्फ भाजपा की महाकाय चुनावी मशीनरी का बेहद जमीनी मुकाबला किया, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित लोकप्रियता को, वह भी उनके गृह प्रदेश में, फीका कर दिया। दरअसल जमीनी मुद्दों की ओर रुख करने और संतुलित रवैया अपनाने का संकेत कांग्रेस ने चुनाव नतीजों के बाद भी दिखाया। चार जून की शाम और अगले दिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने ‘इंडिया’ सहयोगियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह तो कहा कि यह भाजपा और नरेंद्र मोदी की राजनैतिक और नैतिक हार है, लेकिन सरकार बनाने की कोई हड़बड़ी नहीं दिखाई। यकीनन इस बदलाव के नायक राहुल गांधी ही हैं।
Denne historien er fra June 24, 2024-utgaven av Outlook Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra June 24, 2024-utgaven av Outlook Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
हमेशा गूंजेगी आवाज
लोककला के एक मजबूत स्तंभ का अवसान, अपनी आवाज में जिंदा रहेंगी शारदा
क्या है अमिताभ फिनामिना
एक फ्रांसिसी फिल्मकार की डॉक्यूमेंट्री बच्चन की सितारा बनने के सफर और उनके प्रति दीवानगी का खोलती है राज
'एक टीस-सी है, नया रोल इसलिए'
भारतीय महिला हॉकी की स्टार रानी रामपाल की 28 नंबर की जर्सी को हॉकी इंडिया ने सम्मान के तौर पर रिटायर कर दिया। अब वे गुरु की टोपी पहनने को तैयार हैं। 16 साल तक मैदान पर भारतीय हॉकी के उतार-चढ़ाव को करीब से देखने वाली 'हॉकी की रानी' अपने संन्यास की घोषणा के बाद अगली चुनौती को लेकर उत्सुक हैं।
सस्ती जान पर भारी पराली
पराली पर कसे फंदे, खाद न मिलने और लागत बेहिसाब बढ़ने से हरियाणा-पंजाब में किसान अपनी जान लेने पर मजबूर, हुक्मरान बेफिक्र, दोबारा दिल्ली कूच की तैयारी
विशेष दर्जे की आवाज
विधानसभा के पहले सत्र में विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव पास कर एनसी का वादा निभाने का दावा, मगर पीडीपी ने आधा-अधूरा बताया
महान बनाने की कीमत
नाल्ड ट्रम्प की जीत लोगों के अनिश्चय और राजनीतिक पहचान के आपस में नत्थी हो जाने का नतीजा
पश्चिम एशिया में क्या करेंगे ट्रम्प ?
ट्रम्प की जीत से नेतन्याहू को थोड़ी राहत मिली होगी, लेकिन फलस्तीन पर दोनों की योजनाएं अस्पष्ट
स्त्री-सम्मान पर उठे गहरे सवाल
ट्रम्प के चुनाव ने महिला अधिकारों पर पश्चिम की दावेदारी का खोखलापन उजागर कर दिया
जलवायु नीतियों का भविष्य
राष्ट्रपति के चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों के लिए जश्न का कारण हो सकती है लेकिन पर्यावरण पर काम करने वाले लोग इससे चिंतित हैं।
दोस्ती बनी रहे, धंधा भी
ट्रम्प अपने विदेश, रक्षा, वाणिज्य, न्याय, सुरक्षा का जिम्मा किसे सौंपते हैं, भारत के लिए यह अहम