कान फिल्म समारोह के क्लासिक्स सत्र में श्याम बेनेगल की फिल्म मंथन के रिस्टोर्ड संस्करण का प्रदर्शन किया गया। मंथन 1976 में आई थी। इसमें ऑपरेशन फ्लड नाम की एक सहकारिता परियोजना से होने वाले बदलावों को दिखाया गया था। इसी परियोजना के चलते बीसवीं सदी के अंत तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना। केंद्रीय परियोजना की तारीफ में बनाई गई यह फिल्म कई मायनों में सरकारी प्रचार था। बावजूद इसके, यह केवल सरकार का सपाट और सतही गुणगान भर नहीं थी। इसमें आलोचना के तत्व पूरी तरह मौजूद थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने 1965 में डॉ. वर्गीज कुरियन को अमूल की तर्ज पर पूरे देश में एक परियोजना चलाने को कहा। इसके बाद राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन किया गया। डॉ. कुरियन को इसका मुखिया बनाया गया। इसके अंतर्गत किसानों की सहकारी संस्थाएं बनाई गईं, जिसका उद्देश्य उन्हें कारोबार में हिस्सेदारी और अपने उत्पाद पर नियंत्रण देना था। इसी को श्वेत क्रांति या ऑपरेशन फ्लड का नाम दिया गया। अमूल के लिए विज्ञापन बनाने वाले श्याम बेनेगल ने ऑपरेशन फ्लड पर एक डॉक्युमेंट्री बनाई। इस वक्त फिल्म को चंदा जुटाकर बनाया गया था। बेनेगल ने इस फिल्म का बजट 10 लाख आंका था। डॉ. कुरियन ने सहकारी संस्था के पांच लाख सदस्यों को दो-दो रुपया चंदा देने को कहा। यह न केवल सहाकारिता के सिद्धान्तों के अनुरूप था, बल्कि फिल्म को व्यावसायिक रूप से कामयाब बनाने का उपाय भी था। जिसने भी चंदा दिया, उसे बदले में अपने निवेश का परिणाम भी देखने को मिला।
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