कुलगाम कम्युनिस्टों का पुराना गढ़ रहा है। यहां 18 सितंबर को पहले चरण का मतदान हुआ। जम्मू-कश्मीर की इस विधानसभा में घुसते ही समझ आ जाता है कि इसका सियासी चरित्र बाकी जगहों से अलग है। यहां लड़ाई वैचारिक स्तर पर चलती है। अकसर ही यहां बहस इस्लाम बनाम मार्क्सवाद पर आकर टिक जाती है। इसलिए यहां के दोनों प्रत्याशी-माकपा के एमवाइ तारिगामी और प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के समर्थन वाले विपक्षी नेता सायर अहमद रेशी इंकलाब और नए कश्मीर की बातें करते हैं। आजकल बहस चल रही है कि औरतों को जिमखाना जाना चाहिए या नहीं।
माकपा का दफ्तर एक मस्जिद की बगल में है। उसके भीतर फिदेल कास्त्रो के उद्धरणों वाले बड़े-बड़े पोस्टर लगे हैं। एक पोस्टर पर लिखा है, ‘विचारों को हथियारों की जरूरत नहीं होती।’ यहां कम्युनिस्ट घोषणापत्र पढ़ते चे ग्वेरा के पोस्टर भी हैं। दूसरे कमरे के दरवाजे पर माकपा का चुनावी चिह्न चिपका हुआ है और नारा लिखा है, ‘हक का हामी, तारिगामी।’
दफ्तर के बाहर समर्थकों की भीड़ अपने नेता का इंतजार कर रही है लेकिन तारिगामी पास के एक गांव में प्रचार पर निकले हुए हैं। उनके काफिले में गीत बज रहा है, कितना दिलेर है हमारा लीडर, शेरों का शेर है हमारा लीडर। यह पाकिस्तानी गीत है जिसे वहां के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रैलियों में तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) के कार्यकर्ता बजाया करते थे। यहां के चुनाव प्रचार में ज्यादातर जो नारे और गीत बजाए जा रहे हैं, सब पाकिस्तान में हुए पीटीआइ के प्रदर्शनों से उधार लिए हुए हैं। इससे समझ आता है कि पाकिस्तान के घटनाक्रम को कश्मीर में कितने करीब से देखा जा रहा था।
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