कब मुद्दा बनेगी किसानों की आत्महत्या

महाराष्ट्र के अमरावती शहर से 25 किलोमीटर दूर सलोरा गांव के प्रवीण मधुकरराव पाटील के पिता ने दो साल पहले खुदकशी की थी। उनके ऊपर पांच लाख रुपये का कर्ज था जो उन्होंने चना उगाने के लिए म लिया था। पिता की मौत के बाद परिवार में बचे पाटील, उनकी पत्नी, और मां को राज्य सरकार ने 70,000 रुपया देने का वादा किया था, जो आज तक नहीं मिला है। बात इतनी ही नहीं है। पाटील कहते हैं, "हमसे कहा गया है कि इसमें सात साल और लगेगा अभी पता नहीं इतना समय क्यों लगता है, हमें समझ नहीं आ रहा।" कागज पर तो महाराष्ट्र सरकार अपनी योजना के तहत आत्महत्या करने वाले किसान के परिजनों को एक लाख रुपया देती है।
महाराष्ट्र में 2014 से 2022 के बीच कुल 57,160 किसानों ने खुदकशी की है। यह राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का आंकड़ा है। अमरावती के प्रखंड आयुक्त के मुताबिक इस साल के जून तक यानी छह माह में विदर्भ क्षेत्र में 557 किसान अपनी जान ले चुके हैं। इनमें अमरावती में सबसे ज्यादा 170, फिर यवतमाल में 150, बुलढाणा में 111, अकोला में 92 और वाशिम में 34 हैं। इनमें सलोरा के खाते में बीते तीन साल में कुल दस मौतें आई हैं और हरेक मरने वाला किसान अपने परिवार के लिए रोटी कमाने वाला इकलौता शख्स था।
उन्हीं में से एक के पिता अस्सी पार के बुजुर्ग सेषराज तायड़े हैं जिनका सबसे छोटा बेटा गिरिधर 2022 के अप्रैल में घर के भीतर फांसी से लटक कर मर गया था। वे बताते हैं, "उस समय मेरी पत्नी बहुत बीमार थी। गिरिधर के पास दवा के पैसे नहीं थे और पत्नी का ऑपरेशन भी होना तय था। कहीं जाकर उसने पांच हजार रुपये का इंतजाम किया और मां को दवा के लिए दे दिया। तब तक उसके ऊपर बीस हजार का कर्ज चढ़ चुका था।"
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