संगम में निराला समागम

धार्मिक पंडितों-पुरोहितों के मुताबिक, महाकुंभ में इस बार दुर्लभ मुहुर्त का संयोग 144 वर्ष बाद आ रहा है। अनुमान है कि गंगा और यमुना किनारे अस्थाई महाकुंभ नगर में डेढ़ महीने तक 45 से 50 करोड़ श्रद्धालु पूरी दुनिया से आएंगे। मौनी अमावस्या पर ही 8 से 10 करोड़ श्रद्धालु पावन संगम में डुबकी लगा सकते हैं। बसंत पंचमी पर 5 से 6 करोड़ और मकर संक्रांति पर 3 करोड़ श्रद्धालुओं के डुबकी लगाने की उम्मीद है। 13 जनवरी पौष पूर्णिमा को शुरू हुआ महाकुंभ मेला 26 फरवरी को महाशिवरात्रि तक चलेगा। 10 हजार एकड़ में बसे मेले में 44 पक्के स्नान घाट हैं। लगभग 25 से 30 लाख श्रद्धालु कल्पवास करेंगे। देश के सभी अखाड़ों और संन्यासियों के शिविर सज गए हैं।
धर्म ध्वज की स्थापना
निरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी के आचार्य शिविर में वैदिक परंपरा के अनुसार धर्म ध्वज स्थापित किया गया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ सनातन धर्म के वैभव का प्रतीक है। इसमें सनातन संस्कृति और सभ्यता का दर्शन होता है। इसी पर भारत का अस्तित्व टिका है। यह धार्मिक नहीं जन कल्याण का सबसे बड़ा आयोजन है।
चुस्त-दुरुस्त परिवहन व्यवस्था
देश के करोड़ों लोगों को नहान के लिए आना है, ऐसे में श्रद्धालुओं के लिए लगभग 3,000 विशेष ट्रेनें चलाई गई हैं। उत्तर प्रदेश से सटे राज्यों से भी बड़े स्तर पर लोग आएंगे, लिहाजा उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग ने 7,000 से अधिक बसों का संचालन शुरू कर दिया है। प्रयागराज शहर के भीतर 500 शटल बसें और 300 इलेक्ट्रिक बसों का बेड़ा श्रद्धालुओं की सेवा के लिए तैयार हैं। 550 किमी की चकई प्लेटों की सड़कें, डेढ़ लाख टेंट तथा इतने ही टॉयलेट स्थापित किए गए हैं।
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