शराब-विरोधी आंदोलन के सूत्रधार

चुनाव कैसा चल रहा है?
ठीक चल रहा है। जैसा रिस्पॉन्स यहां मिल रहा है उससे तो हमें लग रहा है कि क्लीन स्वीप है, इस बार भाजपा आएगी। मेरा मामला यह है कि कांग्रेस ने बहुत कमजोर कैंडिडेट दिया है। आम आदमी के साथ आमने-सामने की फाइट है। फिफ्टी परसेंट वोट से ऊपर मैं जाऊंगा तभी जीतूंगा, नीचे रहा तो नहीं जीतूंगा।
पिछले चुनाव में भाजपा उतना सक्रिय क्यों नहीं थी, इस बार इतनी आक्रामक क्यों है?
तब तक कोई घोटाला एक्सपोज नहीं हुआ था। इस बार जब घोटाले एक्सपोज हुए, जैसे शराब वाला, तो उसे जनता की नजरों में बहुत ज्यादा गिरा दिया। आप देखिए, उस समय केजरीवाल का नाम बहुत बड़ा था। सरिता सिंह (आप प्रत्याशी, रोहतास नगर) का जब नाम पहली बार आया था तो पब्लिक में ये था कि किसी सरिता सिंह का टिकट घोषित हो गया। वो सत्रह दिन में आईं और सत्रह दिन में चुनाव जीत गईं। केजरीवाल के नाम पर कोई भी खड़ा हो गया तो उस वक्त जीत गया। आज केजरीवाल के नाम पर ये चुनाव लड़ते हैं तो प्रत्याशी के नाम पर तो कुछ है ही नहीं यहां पर, और केजरीवाल को दुनिया तैयार बैठी है निपटाने के लिए क्योंकि उनकी इमेज बहुत खराब हो गई है।
शराब का ठेका बंद करवाने के आरोप में आपको सजा हुई। यह अपने आप में एक दिलचस्प मामला था। क्या हुआ था?
शराब पॉलिसी टर्निंग प्वाइंट थी। पॉलिसी लागू होने के बाद हमारे गली-मुहल्लों में शराब के निजी ठेके खुलने शुरू हो गए थे। यह वो विधानसभा है जिसमें उसका सबसे पहले विरोध हुआ। शराबबंदी आंदोलन इसी विधानसभा से शुरू हुआ। उसमें मेरे ऊपर चार मुकदमे लगे। एक में तीन महीने की सजा हुई। सेशन में जाकर मैं बरी हुआ। हमारे यहां की एक हजार महिलाएं अरविंद केजरीवाल के दफ्तर पर गईं, आइटीओ चौक जाम कर दिया। ये वो विधानसभा है। हमारे यहां शराब के खिलाफ बावन कार्यक्रम हुए। यहीं से आंदोलन पूरी दिल्ली में फैला।
आप लोगों को शुरू में पता कैसे चला कि शराब का कोई घोटाला हुआ है?
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