साल 2010 में यशराज फिल्म्स की फिल्म 'बैंड बाजा बरात' से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता रणवीर सिंह फिल्मी परदे पर ही नहीं, बल्कि निजी जीवन में भी हरफन मौला व मस्तमौला ही नजर आते हैं. रणवीर सिंह सुलझे और विनम्र इंसान हैं. वे हमेशा अपनेपन के भाव से मिलते हैं. कोविड के बाद '83' और 'जयेशभाई जोरदार' के बौक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिटने के बाद रणवीर सिंह इन दिनों एक सिंगापुर की पत्रिका के लिए न्यूड फोटो खिंचवाने को ले कर सुर्खियों में हैं. मीडिया के अनुसार सिंगापुर की पत्रिका के लिए फोटोग्राफर आशीष शाह ने रणवीर सिंह की नग्न तसवीरें मुंबई के महबूब स्टूडियो में महज 3 घंटे के अंदर खींचीं और इस बात का पूरा खयाल रखा कि ये सभी तसवीरें कलात्मक हों.
मगर कुछ लोगों की राय में अब रणवीर सिंह अपनी असफलता को पचा नहीं पा रहे हैं तो कुछ लोग मानते हैं कि अपनी असफलता से हर किसी खासकर अपने प्रशंसकों का ध्यान हटाने के लिए एक नया शिगूफा रचते हुए रणवीर सिंह ने न्यूड फोटो सेशन करवा कर उस की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कर दीं. जबकि रणवीर सिंह कैंप ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि यह रणवीर सिंह जैसा साहसी कलाकार ही कर सकता है. मतलब यह कि बौलीवुड के कई कलाकार और टीवी इंडस्ट्री से जुड़े कई कलाकार आगे बढ़ कर रणवीर सिंह की प्रशंसा में कसीदे पढ़ते नजर आ रहे हैं.
मतलब बौलीवुड में जितने कैंप, उतनी तरह की बातें हो रही हैं तो वहीं धर्म आदि को ले कर असहिष्णु हो रहे भारत में रणवीर सिंह के इस कृत्य को कुछ अलग नजरिए से देखा जा रहा है. इसी वजह से मुंबई के एक एनजीओ से जुड़े भाजपा नेता अखिलेश चौबे ने रणवीर सिंह के इस कृत्य के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 292, 293, 509 व आईटी एक्ट 67ए के तहत एफआईआर दर्ज करा दी है तो वहीं मुजफ्फरपुर, बिहार के सामाजिक कार्यकर्ता एम राजू नैयर ने स्थानीय कोर्ट में रणवीर के खिलाफ भावनाओं को ठेस पहुंचाने और महिलाओं की मर्यादा के अपमान करने की शिकायत दर्ज करवाई.
मगर अहम सवाल यह है कि रणवीर सिंह के इस कृत्य से किसे नुकसान हुआ ? अभिनेता रणवीर सिंह ने अपने कपड़े उतारे हैं. किसी ने पैसे या धमकी दे कर उस के कपड़े नहीं उतरवाए हैं.
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.
शादी से पहले बना लें अपना आशियाना
कपल्स शादी से पहले कई तरह की प्लानिंग करते हैं लेकिन वे अपना अलग आशियाना बनाने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं करते जिसका परिणाम कई बार रिश्तों में खटास और अलगाव के रूप में सामने आता है.
ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज
बारबार पेशाब करने को मजबूर होना ओवरऐक्टिव ब्लैडर होने का संकेत होता है. यह समस्या पुरुष और महिलाओं दोनों को हो सकती है. महिलाओं में तो ओएबी और मेनोपौज का कुछ संबंध भी होता है.
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सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार है क्योंकि दान और पूजापाठ की व्यवस्था के साथ ही असमानता शुरू हो जाती है जो घर और कार्यस्थल तक बनी रहती है.
एमआरपी का भ्रमजाल
एमआरपी तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.
कर्ज लेकर बादामशेक मत पियो
कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.
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कनाडा के हिंदू मंदिरों पर कथित खालिस्तानी हमलों का इतिहास से गहरा नाता है जिसकी जड़ में धर्म और उस का उन्माद है. इस मामले में राजनीति को दोष दे कर पल्ला झाड़ने की कोशिश हकीकत पर परदा डालने की ही साजिश है जो पहले भी कभी इतिहास को बेपरदा होने से कभी रोक नहीं पाई.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
2004 में कांग्रेस नेतृत्व वाली मिलीजुली यूपीए सरकार केंद्र की सत्ता में आई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों के साथ संसद से सामाजिक सुधार के कई कानून पारित कराए, जिन का सीधा असर आम जनता पर पड़ा. बेलगाम करप्शन के आरोप यूपीए को 2014 के चुनाव में बुरी तरह ले डूबे.
अमेरिका अब चर्च का शिकंजा
दुनियाभर के देश जिस तेजी से कट्टरपंथियों की गिरफ्त में आ रहे हैं वह उदारवादियों के लिए चिंता की बात है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ने और बढ़ा दिया है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत दरअसल चर्चों और पादरियों की जीत है जिस की स्क्रिप्ट लंबे समय से लिखी जा रही थी. इसे विस्तार से पढ़िए पड़ताल करती इस रिपोर्ट में.