स्त्री और पुरुष एकदूसरे के पूरक हैं. प्रसिद्ध विचारक टैनीसन ने कहा है, "स्त्री और पुरुष का ध्येय परस्पर एक है, वे साथ ही साथ उन्नति करते हैं या पतन की ओर जाते हैं, छोटे या महान बनते हैं, पराधीन या स्वतंत्र होते हैं."
स्त्रीपुरुष दोनों का मिलना जरूरी है, तभी बच्चे होते हैं और परिवार बनता है. मगर जैसे संयुक्त परिवार से लोग न्यूक्लियर फैमिली या छोटे परिवार की ओर बढ़े हैं वैसे ही अब बहुत से पतिपत्नी हस्थी की झंझटों से मुक्त हो कर स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं, जिस के लिए या तो आपसी रजामंदी से अलग हो जाते हैं या फिर अदालत की शरण में जा कर तलाक लेना पसंद करते हैं.
विवाह संस्था अब बुरी तरह प्रभावित हो रही है. जहां पहले प्रेम और विश्वास था या समर्पण और एकदूसरे के प्रति लगाव की भावना जोर मारती थी, लोग अपने परिवार और रिश्तों के प्रति कर्तव्यबोध से बंधे थे, वहीं आज अदालतों में तलाक के ऐसेऐसे केस आ रहे हैं कि लगने लगा है मानो शादीविवाह गुड्डेगुड़ियों का खेल बन गया है. इतनी बड़ीबड़ी उम्र के लोग अपने बच्चों के शादीब्याह के बाद तलाक के लिए अदालत में खड़े होते हैं.
एक लंबा केस 9 साल तक चला. उस में पत्नी ने पति से इस आधार पर तलाक मांगा कि पति उस के लायक नहीं है. अदालतों ने पत्नी की नहीं सुनी. फिर अब दोनों की रजामंदी से तलाक हुआ.
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कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
बौलीवुड के हालात अब बदतर होते जा रहे हैं. फिल्में पूरी तरह से कौर्पोरेट के हाथों में हैं जहां स्क्रिप्ट, कलाकार, लेखक व दर्शक गौण हो गए हैं और मार्केट पहले स्थान पर है. यह कहना शायद गलत न होगा कि अब बौलीवुड कंगाली और गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है.
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उतरन
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
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इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्ट करना ठीक नहीं
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महिलाएं बड़ी बड़ी बाधाएं पार कर उस मुकाम पर पहुंची हैं जहां उन का अपना अलग अस्तित्व, पहचान और स्वाभिमान वगैरह होते हैं. ऐसा आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार के बनाए कानूनों के अलावा शिक्षा और जागरूकता के चलते संभव हो पाया. महिलाओं ने अब इस बात से साफ इनकार कर दिया कि वे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बने रहना चाहती हैं.
सांई बाबा विवाद दानदक्षिणा का चक्कर
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1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा भाग-5
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