बच्चों की परवरिश में 24 घंटे न लगाएं
Sarita|November First 2022
अकसर बच्चा होने के बाद सारी परवरिश की जिम्मेदारी महिलाओं पर आ पड़ती है. ऐसे में वे खुद के डैवलपमैंट पर ध्यान नहीं दे पाती हैं. जरूरी है कि महिलाएं कुछ समय अपनी ग्रोथ के लिए जरूर निकालें.
सोमा घोष
बच्चों की परवरिश में 24 घंटे न लगाएं

पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था 'महान सपने देखो और उन्हें पूरा करने में जुट जाओ, क्योंकि महान सपने जरूर पूरे होते हैं.' सो, जरूरी है कि हर बच्चा बड़े सपने देखे. तभी वह उसे पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा सकता है. अभिभावकों को अपने बच्चों को बड़े सपने देखने और उस के लिए जरूरी मेहनत करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. लेकिन इन्हीं सपनों को पूरा करवाने के लिए अगर पेरैंट्स अपने कामकाज छोड़ कर उन की परवरिश में लग जाएं तो ये पेरैंट्स के लिए नहीं, बल्कि बच्चों के लिए बोझ बन जाता है क्योंकि हर समय पू उन पर नजर रखना, उन की किसी समस्या का तुरंत समाधान खोज लेना पेरैंट्स की आदत बन जाती है. ऐसा अधिकतर महिलाएं ही करती हैं क्योंकि इसे वे सही मान कर अपने कीमती समय को बच्चों पर गंवाती रहती हैं.

अपनी काबीलियत को जाने न दें

मुंबई की एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में रहने वाली वर्किंग महिला सुनीता प्रैग्नेंट होने पर औफिस जाती रही. डिलीवरी के करीब आने पर उन्होंने मैटरनिटी लीव ले कर औफिस जाना बंद कर दिया. करीब 25 दिनों बाद उस की बेटी हुई. पतिपत्नी की खुशी का ठिकाना न रहा. दोनों ने उस की परवरिश का जिम्मा लिया. सुनीता की मां भी नातिन की परवरिश में बेटी का हाथ बंटाने आ गई. बेटी 3 महीने की हो गई तो सुनीता ने ऑफिस जौइन कर लिया. लेकिन उस का मन बेटी को याद करता रहा. दिन में कई बार फोन कर वह बेटी का हालचाल पूछती पर फिर भी सुनीता का काम में मन न लगता था. अंत में वह काम छोड़ बच्चे की देखभाल करने लगी.

काम से लगता है डर

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