दिल्ली में नए संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया गया तो कांग्रेस सहित 19 दलों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नए भवन का उद्घाटन पौराणिक तौरतरीकों से करना चाहते थे, इस कारण दलित महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया. विपक्ष यह चाहता था कि नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराया जाए क्योंकि वे संविधान की संरक्षक हैं.
भारत में जातिवाद किस तरह से हावी है, यह उस का छोटा सा पर बेहद गंभीर और दुखदायी उदाहरण है. बात नई संसद के उद्घाटन तक ही सीमित नहीं है. अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए पर उस समय के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया गया था. इसी तरह से संसद भवन का शिलान्यास भी प्रधानमंत्री ने ही खुद हवन करा कर किया और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया.
भारतीय जनता पार्टी यह कह रही है कि उस की सरकार ने दलित वर्ग के रामनाथ कोविंद और आदिवासी वर्ग की द्रौपदी मुर्मू को एक के बाद एक राष्ट्रपति बना कर देश के सब से बड़े पद पर बैठाने का काम किया पर इस से साफ है कि जाति को ले कर किसी तरह की सोच बनी हुई है. देश की आजादी के 75 साल बाद भी अगर जाति का भूत सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोगों के दिलों पर सवार है तो कैसा संविधान, किस बात का अमृत काल और किस के लिए अमृत महोत्सव?
नई संसद के उद्घाटन का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. जातिवाद के सहारे संविधान की भी चर्चा हुई, जिस में यह खोजा गया कि नई संसद के उद्घाटन का अधिकार किस को दिया गया है. विपक्ष का पहला तर्क था कि संसद की परिभाषा में कहीं भी प्रधानमंत्री का जिक्र नहीं है. इसलिए प्रधानमंत्री को उद्घाटन नहीं करना चाहिए था.
दूसरे, प्रधानमंत्री सिर्फ लोकसभा के नेता हैं और संसद दोनों सदनों को मिला कर बनती है. इसलिए, राष्ट्रपति को ही इस का उद्घाटन करना चाहिए. तीसरे, राज्यसभा कभी भंग नहीं होती. इसे काउंसिल ऑफ स्टेट्स भी कहा जाता है. इस के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति होते हैं. इसलिए राष्ट्रपति के बाद उद्घाटन का नैतिक दायित्व अगर किसी का होता है तो उपराष्ट्रपति का होना चाहिए.
Denne historien er fra June Second 2023-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra June Second 2023-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.