पहले पटना, फिर बेंगलुरु में भाजपा के खिलाफ 26 राजनीतिक दलों के जुटान के बाद विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कवायद पटना से शुरू हुई. तीसरे चरण की बैठक मुंबई में होगी.
इस गठबंधन को इं. डि. या नाम देना राष्ट्रवाद पर भाजपा के एकाधिकार को चुनौती देने की सोचीसमझी रणनीति है. इस में राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो' यात्रा का मूल संदेश भी शामिल है, जो देश के सभी समुदायों, जातियों और अलगअलग संस्कृतियों के बीच भाईचारा मजबूत कर के भारत की धर्मनिरपेक्षता व अखंडता को बचाए रखने की कोशिशों पर आधारित है.
बीते कुछ सालों में भाजपा 'नेशन फर्स्ट' का तमगा पहन कर खुद को सब से बड़ा 'राष्ट्रवादी' घोषित करने में लगी है जबकि उस का 'हिंदू राष्ट्रवाद' देश के संवैधानिक सिद्धांतों के बिलकुल विपरीत है और कोरा सनातनी धर्मी वाद है. 1947 में जब देश आजाद हुआ तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस का राष्ट्रवाद से दूरदूर तक कोई लेनादेना नहीं था. देश की आजादी की लड़ाई में आरएसएस की कोई भूमिका कभी नहीं रही, मगर इतने सालों बाद जब उस की बनाई राजनीतिक पार्टी को सत्ता की चाशनी चाटने का अवसर मिला तो अब उन का अपनी तरह का 'राष्ट्रवाद' फूटफूट कर बह रहा है.
पिछले 2 दशकों से आरएसएस और भाजपा की बहुसंख्यकवादी नीतियां 'राष्ट्रवाद राष्ट्रवाद' का नारा लगा कर हिंदू आबादी को अपनी ओर खींचे रखने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की तकनीक अपनाए हुए है. सनातनी पूजापाठी और अंधविश्वासी हिंदू राष्ट्र बनाने की ऐसी धुन लगी है कि देशभर में हिंसा, आगजनी, नफरती भाषणों का बाजार गरम है. ताजा मामला मणिपुर में औरतों की नंगी परेड का है, जिसे दुनिया ने देखा और शर्म से आंखें भर आईं.
उल्लेखनीय है कि जिस दौरान यह अमानवीय और देश को दुनिया के सामने शर्मसार करने वाली घटना मणिपुर में घटित हुई उस वक्त देश के गृहमंत्री अमित शाह के दौरे मणिपुर में बारबार लग रहे थे.
2 महीने से एक राज्य सुलग रहा है, आदिवासी समाज पर हिंसा हो रही है, हत्याएं की जा रही हैं, महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार हो रहे हैं, उन की नंगी परेड कराई जा रही है, उन के वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जा रहे हैं, मगर देश के गृहमंत्री उस को काबू करने में नाकाम हैं.
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यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.