द्वारका दाऊ गांव के संपन्न किसान थे. उम्र 90 वर्ष के लगभग थी. गांव के सभी लोग उन का आदर करते थे. जब वे मरने को हुए तो गाय को दान करते समय अपने बेटे से बोले, 'बेटा प्रकाश, मेरी एक इच्छा है कि मरने के बाद मेरी अस्थियों का देश की सभी बड़ी नदियों में विसर्जन करा दिया जाए.'
द्वाराका दाऊ का जब देहांत हुआ तो गांठ के पूरे और दिमाग से खारिज बेटे ने उन की अस्थियों की थैली को गले में लटकाया और चल दिए सभी बड़ी नदियों में हड्डियों का विसर्जन करने.
प्रश्न यह उठता है कि द्वारका दाऊ के मन में यह कैसे आया कि मरने के बाद उन की हड्डियों का देश की सभी बड़ी नदियों में विसर्जन किया जाए.
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने वसीयतनामा में इच्छा जाहिर की थी कि मृत्यु के बाद उन की अस्थियों का कुछ भाग गंगा नदी में विसर्जन कर दिया जाए और शेष भाग को हवाई जहाज से भारत के दूरदराज खेतों में डाल दिया जाए. आगे नेहरूजी ने लिखा कि इस में उनकी कोई धार्मिक भावना नहीं है बल्कि, गंगा नदी से उन्हें बचपन से लगाव रहा है और वे अपनी हड्डियों को खेत की उस मिट्टी का भाग बनाना चाहते थे जिस का भारतवासी अन्न खाते हैं.
नेहरूजी के मरने के बाद उन के उत्तराधिकारियों ने बिना किसी विशेष समारोह या दिखावे के अस्थियों के कुछ भाग का गंगा नदी में विसर्जन कर दिया. शेष भाग को हवाई जहाज से भारत के खेतों में फैला दिया. नेहरूजी की इस इच्छा के पीछे देशप्रेम के अलावा कुछ भी नहीं था और आयोजकों की मंशा भी नेहरूजी की इच्छापूर्ति करना था.
नेहरूजी के बाद जब जयप्रकाश नारायण का देहांत हुआ तो जनता पार्टी ने शासकीय सम्मान और समारोहपूर्वक उन की अस्थियों का देश की सभी बड़ी नदियों में विसर्जन किया. जयप्रकाश एक तपे हुए राजनेता तथा जननायक थे. वे सत्ता से सदैव दूर रहे. इस कारण उन के प्रति जनता की आस्था थी. इस आस्था का ही कारण था कि उन की अस्थियों के विसर्जन में सभी जगह जनता ने भाग ले कर उन्हें अपनी अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की.
Denne historien er fra September First 2023-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra September First 2023-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
पुराणों में भी है बैड न्यूज
हाल ही में फिल्म 'बैड न्यूज' प्रदर्शित हुई, जो मैडिकल कंडीशन हेटरोपैटरनल सुपरफेकंडेशन पर आधारित थी. इस में एक महिला के एक से अधिक से शारीरिक संबंध दिखाने को हिंदू संस्कृति पर हमला कहते कुछ भगवाधारियों ने फिल्म का विरोध किया पर इस तरह के मामले पौराणिक ग्रंथों में कूटकूट कर भरे हुए हैं.
काम के साथ सेहत भी
काम करने के दौरान लोग अकसर अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखते, जिस से हैल्थ इश्यूज पैदा हो जाते हैं. जानिए एक्सपर्ट से क्यों है यह खतरनाक?
प्यार का बंधन टूटने से बचाना सीखें
आप ही सोचिए क्या पेरेंट्स बच्चों से न बनने पर उन से रिश्ता तोड़ लेते हैं? नहीं न? बच्चों से वे अपना रिश्ता कायम रखते हैं न, तो फिर वे अपने वैवाहिक रिश्ते को बचाने की कोशिश क्यों नहीं करते? बच्चे मातापिता को डाइवोर्स नहीं दे सकते तो पतिपत्नी एकदूसरे के साथ कैसे नहीं निभा सकते, यह सोचने की जरूरत है.
तलाक अदालती फैसले एहसान क्यों हक क्यों नहीं
शादी कर के पछताने वाले हजारोंलाखों लोग मिल जाएंगे, लेकिन तलाक ले कर पछताने वाले न के बराबर मिलेंगे क्योंकि यह एक घुटन भरी व नारकीय जिंदगी से आजादी देता है. लेकिन जब सालोंसाल तलाक के लिए अदालत के चक्कर काटने पड़ें तो दूसरी शादी कर लेने में हिचक क्यों?
शिल्पशास्त्र या ज्योतिषशास्त्र?
शिल्पशास्त्र में किसी इमारत की उम्र जानने की ऐसी मनगढ़ंत और गलत व्याख्या की गई है कि पढ़ कर कोई भी अपना सिर पीट ले.
रेप - राजनीति ज्यादा पीडिता की चिंता कम
देश में रेप के मामले बढ़ रहे हैं. सजा तक कम ही मामले पहुंचते हैं. इन में राजनीति ज्यादा होती है. पीड़िता के साथ कोई नहीं होता.
सिध सिरी जोग लिखी कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
धीरेधीरे मैं भी मौजूदा एडवांस दुनिया का हिस्सा बन गई और उस पुरानी दुनिया से इतनी दूर पहुंच गई कि प्रांशु को लिखवाते समय कितने ही वाक्य बारबार लिखनेमिटाने पड़े पर फिर भी वैसा...
चुनाव परिणाम के बाद इंडिया ब्लौक
16 मई, 2024 को चुनावप्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में दहाड़ने की कोशिश करते हुए कहा था कि 4 जून को इंडी गठबंधन टूट कर बिखर जाएगा और विपक्ष बलि का बकरा खोजेगा, चुनाव के बाद ये लोग गरमी की छुट्टियों पर विदेश चले जाएंगे, यहां सिर्फ हम और देशवासी रह जाएंगे. लेकिन 4 जून के बाद कुछ और हो रहा है.
वक्फ की जमीन पर सरकार की नजर
भाजपा की आंखें वक्फ की संपत्तियों पर गड़ी हैं. इस मामले को उछाल कर जहां वह एक तरफ हिंदू वोटरों को यह दिखाने की कोशिश करेगी कि देखो मुसलमानों के पास देश की कितनी जमीन है, वहीं वक्फ बोर्ड में घुसपैठ कर के वह उसे अपने नियंत्रण में लेने की फिराक में है.
1947 के बाद कानूनों से रेंगतीं सामाजिक बदलाव की हवाएं
15 अगस्त, 1947 को भारत को जो आजादी मिली वह सिर्फ गोरे अंगरेजों के शासन से थी. असल में आम लोगों, खासतौर पर दलितों व ऊंची जातियों की औरतों, को जो स्वतंत्रता मिली जिस के कारण सैकड़ों समाज सुधार हुए वह उस संविधान और उस के अंतर्गत 70 वर्षों में बने कानूनों से मिली जिन का जिक्र कम होता है जबकि वे हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं. नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी का सपना इस आजादी का नहीं, बल्कि देश को पौराणिक हिंदू राष्ट्र बनाने का रहा है. लेखों की श्रृंखला में स्पष्ट किया जाएगा कि कैसे इन कानूनों ने कट्टर समाज पर प्रहार किया हालांकि ये समाज सुधार अब धीमे हो गए हैं या कहिए कि रुक से गए हैं.