फेफड़ों से जुड़ी कई बीमारियों के इलाज हेतु स्टेम सैल थेरैपी एक उम्मीद की किरण बन कर सामने आई है. इस थेरैपी में फेफड़ों के क्षतिग्रस्त हुए टिशूज की मरम्मत कर के उन्हें दोबारा तैयार करने की क्षमता होती है. स्टेम सैल से विभिन्न गंभीर श्वसन समस्याओं (सांस लेने में तकलीफ) से जूझ रहे लोगों को उम्मीद जगी है. हालांकि फिलहाल यह थेरैपी विभिन्न क्लिनिकल ट्रायल से गुजर रही है और इस के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाने से पहले आगे और शोध किए जाने की जरूरत होगी.
फेफड़ों की बीमारी के बारे में समझिए
फेफड़ों की बीमारियों में कई प्रकार की स्थितियां शामिल हो सकती हैं जो एक व्यक्ति की श्वसन प्रणाली (सांस लेने की प्रक्रिया) पर गंभीर असर कर सकती हैं. फेफड़ों की सब से आम बीमारियों में क्रोनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, अस्थमा, पल्मोनरी फाइब्रोसिस और फेफड़ों का कैंसर शामिल हैं.
इन बीमारियों में अकसर सांस फूलने, खांसी आने, सांस लेते वक्त सीटी जैसी तेज आवाज निकलना (घबराहट) और फेफड़ों की कार्यक्षमता कमजोर होने तथा हमेशा दुख एवं चिड़चिड़ापन रहने जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. इस के गंभीर मामलों में जान को खतरा भी हो सकता है, जिस के कारण इस के लिए प्रभावशाली उपचार विकसित करना बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाता है.
स्टेम सैल्स और उन की क्षमताएं
स्टेम सैल्स ऐसी खास कोशिकाएं होती हैं जो शरीर में अलगअलग प्रकार की कोशिकाएं बन सकती हैं और इन में फेफड़ों की कोशिकाएं भी शामिल हैं. फेफड़ों की क्षतिग्रस्त हो चुकी कोशिकाओं को ठीक करने में यह थेरैपी बेहद कारगर हो सकती है. इस से फेफड़े बेहतर ढंग से काम कर सकते हैं.
फेफड़ों की बीमारी के उपचार में 2 मुख्य प्रकार के स्टेम सैल इस्तेमाल किए जाते हैं- एंब्रायोनिक स्टेम सैल्स और एडल्ट स्टेम सैल्स एंब्रायोनिक स्टेम सैल्स प्रारंभिक भ्रूण से निकलते हैं और शरीर में कोई भी कोशिका बन सकते हैं लेकिन इन के साथ नैतिकता से जुड़ी चिंताएं होती हैं, वहीं, एडल्ट स्टेम सैल्स शरीर की विभिन्न कोशिकाओं में पाए जाते हैं जो आसानी से मिल जाते हैं और इन के लिए विवाद भी कम होते हैं. इसलिए आमतौर पर यह स्टेम सैल थेरैपी के लिए पहली पसंद बनते हैं.
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