मोदी सरकार में भारत की विदेश नीति इतनी ज्यादा कमजोर हो गई है कि आज हमें मालदीव जैसा पिद्दी सा देश आंखें दिखा रहा है. कितनी हास्यास्पद है कि सोशल मीडिया का सहारा ले कर जनता के जरिए विदेश मंत्रालय में ताकत भरी जा रही है. कोई खुल कर यह बात बोल दे तो उस की जबान बंद करने के लिए उसे देशद्रोही बता दिया जाता है, घुसपैठिया या पाकिस्तानी करार दे दिया जाता है.
नक्शे पर नजर दौड़ाएं तो आज कोई भी पड़ोसी देश भारत का सगा नहीं रह गया है. भारत से समुद्री सीमा साझा करने वाला मालदीव, जिस से कभी हमारे रणनीतिक, आर्थिक और सैन्य संबंध काफी घनिष्ठ थे, जो कभी हमारे देश के अमीरों और बौलीवुड हस्तियों के लिए छुट्टियां बिताने के लिए बैस्ट डैस्टिनेशन था, अब वहां जाने के लिए भारतीयों को सोचना पड़ेगा.
भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक संबंधों का एक विस्तृत इतिहास रहा है. नेपाल भारत के आर्थिक और सामरिक हितों के लिए महत्त्वपूर्ण है. नेपाल से हमारे रिश्ते कभी रोटीबेटी के थे. भारत के 5 राज्य नेपाल के साथ अपनी सीमाएं साझा करते हैं. इन में बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और सिक्किम शामिल हैं. इन क्षेत्रों की सीमाओं से लोग रोटीरोजगार के लिए प्रतिदिन इधर से उधर जाते हैं.
मगर आज जबकि नेपाल पूरी तरह चीन के प्रभाव में है, हमें अपनी सीमाओं की चौकसी और सुरक्षा बढ़ानी पड़ी है. नेपाल में चीन का बढ़ता हस्तक्षेप, नेपाल की आंतरिक राजनीति और भारत की पड़ोस नीति की समस्या कुछ ऐसे पहलू हैं जो दोनों देशों में मतभेद के कारण बन रहे हैं.
नेपाल में चीन का दबदबा बहुत तेजी से बढ़ रहा है और भारत का प्रभाव वहां नगण्य हो चुका है. चीन ने हाल ही में अपने चार बंदरगाह नेपाल के इस्तेमाल के लिए खोल दिए हैं. भारत और नेपाल के बीच कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्रों को ले कर विवाद बढ़ता जा रहा है. नेपाल का दावा है कि महाकाली नदी के पूर्वी हिस्से में स्थित ये क्षेत्र 1816 की सुगौली संधि के तहत नेपाल का हिस्सा हैं.
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