पहले त हले हमारे देश में एक कहावत बहुत मशहूर थी, 'उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान.' इस का मतलब यह था कि खेती सब से अच्छा काम है. खेती के बाद कारोबार करना अच्छा है. इस के बाद चाकरी यानी नौकरी करने का काम जिसे भीख मांगने जैसा कहा गया है. तब हमारे देश के किसानों में संपन्नता थी. राजाओं, विदेशी आक्रमणकारियों, अंगरेजों से ले कर आजाद भारत की सरकारों ने खेती को चूस कर उसे बेकार बना दिया. आज किसान 500 रुपए महीने की किसान सम्मान निधि को भीख की तरह ले रहा है.
आज 'उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान' कहावत उलट गई है. सब से पहले लोग नौकरी करना चाहते हैं, इस के बाद कारोबार, फिर जोमैटो जैसी कंपनियों में डिलीवरी बौय की नौकरी तक कर रहे हैं लेकिन खेती नहीं करना चाहते. इस की वजह देश में खेती की खराब व्यवस्था है. इस की जिम्मेदार देश की सरकार और बड़ी कंपनियां हैं जो गठजोड़ से किसानों का खून चूस रही हैं. वोट लेने के लिए किसानों की आय दोगुनी करने का झांसा दिया जा रहा है, जो एक जुमले से अधिक कुछ नहीं है.
देश की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका अहम है. इस के बाद भी भारत में कृषि की हालत लगातार खराब होती जा रही है. साल 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक देश की कुल जीडीपी में कृषि का हिस्सा लगभग 16 फीसदी है. करीब 49 फीसदी लोग रोजगार के लिए इस पर निर्भर करते हैं. भारत में किसानों की हालत बेहद खराब है. किसानों का मानना है कि मौजूदा सिस्टम में वे अपनी उपज से बहुत ज्यादा कमाई नहीं कर पाते. कई इलाकों में तो किसान जितना पैसा बुआई में लगाता है. वह लागत मूल्य भी नहीं निकाल पाता.
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार भारत में प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय 2019 में 10,218 रुपए या प्रति परिवार 1.23 लाख रुपए सालाना थी. यह 0.512 हैक्टेयर (1.26 एकड़) के औसत जोत आकार पर आधारित है. किसानों की आय दोगुनी (डीएफआई) करने के रोडमैप के अनुसार, कृषि वर्ष 2022-23 तक किसानों की औसत कृषि आधारित सालाना आय 2015-16 की 58,246 रुपए से दोगुनी हो कर 1,16,165 रुपए हो जानी थी जो अपने लक्ष्य से बहुत दूर है.
आंदोलन की राह पर किसान
Denne historien er fra March First 2024-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra March First 2024-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.