बौलीवुड में कई ऐसे स्टार्स हैं जिन्होंने 40 की उम्र के बाद शादी की है. सैफ अली खान, नीना गुप्ता, प्रीति जिंटा, कबीर बेदी, उर्मिला मातोंडकर जैसे अनेक आर्टिस्ट हैं जिन की सुहागसेज अधेड़ावस्था में सजी. 58 वर्षीय ऐक्टर और मौडल मिलिंद सोमन ने अपने से आधी उम्र की गर्लफ्रैंड अंकिता कोंवर संग साल 2018 में शादी रचाई थी. हाल ही में 56 वर्षीय अरबाज खान ने अपनी गर्लफ्रैंड शूरा खान के साथ निकाह किया है.
साउथ फिल्मों के स्टार प्रकाश राज ने भी 56 वर्ष की उम्र में अपने से 12 साल छोटी पोनी वर्मा से शादी की है. फिल्म इंडस्ट्री के लोग उन की शादी में शामिल हुए और पार्टी एंजौय की. 1950 से 1980 के बीच तमिल सिनेमा के सब से रोमांटिक हीरो रहे जेमिनी गणेशन ने 3 शादियां की थीं. उन्होंने अपनी तीसरी शादी 78 साल में की थी. इस बार उन्होंने अपने से 36 साल छोटी लड़की से शादी की थी, जिस की चर्चा खूब हुई थी. जेमिनी गणेशन मशहूर अभिनेत्री रेखा के पिता थे.
चकाचौंध और ग्लैमर की दुनिया के बाहर भी कई ऐसी हस्तियां हैं जिन्होंने अधेड़ावस्था में शादी की और उन की शादी पर कोई सवाल नहीं उठा. सुप्रीम कोर्ट के जानेमाने वकील हरीश साल्वे ने हाल ही में तीसरी शादी की है. उन की उम्र 68 वर्ष है. हरीश साल्वे ने त्रायना से तीसरी शादी रचाने के बाद लंदन में शानदार दावत दी, जिस में जानीमानी हस्तियां शामिल हुईं. आम समाज में भी इस तरह की शादियां होती रहती हैं.
साल 2021 में रामपुर के शमी अहमद का निकाह भी काफी चर्चा में रहा था. उन्होंने 90 साल की उम्र में 75 साल की महिला से निकाह कर लिया था. हाल ही में पाकिस्तान से एक अनोखा मामला सामने आया है जहां 110 साल की उम्र में एक व्यक्ति ने चौथी शादी कर ली है.
पिछले साल फरवरी के महीने में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक अनोखी शादी देखने को मिली. यहां 70 साल के व्यक्ति ने 75 साल की महिला के साथ शादी की थी. बता दें कि दोनों की मुलाकात वृद्धाश्रम में हुई थी. वहीं से दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे, जिस के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला किया. इस शादी की चर्चा उस वृद्धाश्रम से ले कर पूरे राज्य तक में हुई थी. कई कारणों से कोई व्यक्ति यदि जवानी में शादी के बंधन में नहीं बंध पाता तो क्या वह कभी शादी न करे ? ऐसा तो कहीं नहीं लिखा है.
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कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
बौलीवुड के हालात अब बदतर होते जा रहे हैं. फिल्में पूरी तरह से कौर्पोरेट के हाथों में हैं जहां स्क्रिप्ट, कलाकार, लेखक व दर्शक गौण हो गए हैं और मार्केट पहले स्थान पर है. यह कहना शायद गलत न होगा कि अब बौलीवुड कंगाली और गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है.
बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बरताव करें
अकसर अपने बीमार परिजनों से मिलने जाते समय लोग ऐसी हरकतें कर या बातें कह देते हैं जिस से सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी हो जाती है और माहौल खराब हो जाता है. जानिए ऐसे मौके पर सही बरताव करने का तरीका.
उतरन
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
युवतियां ब्रेकअप से कैसे उबरें
ब्रेकअप के बाद सब का अपना अलग हीलिंग प्रोसैस होता है लेकिन खुद से प्यार करना और समय देना सब से जरूरी होता है.
इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्ट करना ठीक नहीं
जिन परिवारों में इकलौता बच्चा होता है वे बच्चे की सुरक्षा के प्रति बहुत सजग रहते हैं. उसे हर वक्त अपनी निगरानी में रखते हैं. लेकिन बच्चे की अत्यधिक सुरक्षा उस के भविष्य और कैरियर को तबाह कर सकती है.
मेले मामा चाचू बूआ की शादी में जलूल आना
शादी कार्ड में जिन के द्वारा लिखवाया गया होता है कि 'मेले मामा/चाचू की शादी में जलूल आना' उन प्यारेप्यारे बच्चों के लिए सब से बड़ी सजा हो जाती है कि वे देररात तक जाग सकते नहीं.
गलत हैं नायडू स्टालिन औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं
महिलाएं बड़ी बड़ी बाधाएं पार कर उस मुकाम पर पहुंची हैं जहां उन का अपना अलग अस्तित्व, पहचान और स्वाभिमान वगैरह होते हैं. ऐसा आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार के बनाए कानूनों के अलावा शिक्षा और जागरूकता के चलते संभव हो पाया. महिलाओं ने अब इस बात से साफ इनकार कर दिया कि वे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बने रहना चाहती हैं.
सांई बाबा विवाद दानदक्षिणा का चक्कर
वाराणसी के हिंदू मंदिरों से सांईं बाबा की मूर्तियों को हटाने की सनातनी मुहिम फुस हो कर रह गई है तो इस की अहम वजह यह है कि हिंदू ही इस मसले पर दोफाड़ हैं. लेकिन इस से भी बड़ी वजह पंडेपुजारियों का इस में ज्यादा दिलचस्पी न लेना रही क्योंकि उन की दक्षिणा मारी जा रही थी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा भाग-5
1990 के बाद का दौर भारत में भारी उथलपुथल भरा रहा. एक तरफ नई आर्थिक नीतियों ने कौर्पोरेट को नई जान दी, दूसरी तरफ धर्म का बोलबाला अपनी ऊंचाइयों पर था. धार्मिक और आर्थिक इन बदलावों ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया, जिस का असर संसद पर भी पड़ा.
न्याय की मूरत सूरत बदली क्या सीरत भी बदलेगी
भावनात्मक तौर पर 'न्याय की देवी' के भाव बदलने की सीजेआई की कोशिश अच्छी है, लेकिन व्यवहार में इस देश में निष्पक्ष और त्वरित न्याय मिलने व कानून के प्रभावी अनुपालन की कहानी बहुत आश्वस्त करने वाली नहीं है.