शीरीन एबादी अपने देश ईरान से निर्वासित हो कर 2009 से ब्रिटेन में रह रही हैं. वे एक वकील, पूर्व न्यायाधीश और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. उन्होंने ईरान में कई मानवाधिकार केंद्रों की स्थापना की और ईरानी औरतों के अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. 2003 में शीरीन एबादी को लोकतंत्र और मानवाधिकारों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के अधिकारों, के लिए किए गए कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
वे नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली ईरानी और पहली मुसलिम महिला हैं. एबादी की जिंदगी सीधी और आसान कभी नहीं रही. उन की निर्वासित जिंदगी ईरान में धार्मिक कट्टरवाद का ऐसा खूंखार चेहरा सामने लाती है जो मानवता को शर्मसार करता है. बिलकुल वैसे ही कट्टरवाद की आग में आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तुर्किस्तान, कजाखिस्तान, यूक्रेन, रूस, भारत और अमेरिका जैसे तमाम देश धधक रहे हैं. इस आग में महिलाएं ज्यादा झुलस रही हैं क्योंकि वे पुरुषों के अधीन हैं.
शीरीन एबादी ने अपनी कई किताबों में इस बात का खुलासा किया है कि धार्मिक कट्टरता और रूढ़िवादिता से ग्रस्त सरकारें अपनी जिद को पूरा करने के लिए लोगों को किसकिस तरह से प्रताड़ित करती हैं, खासकर औरतों को.
कई सालों तक अधिकारियों ने एबादी के पति, उन की बेटियों और बहन को निशाना बनाया. एबादी के पति को एक दिन अचानक गायब कर दिया गया. उस के बाद पुलिस ने उन्हें शराब, सैक्स और व्यभिचार के मामले में फंसा कर अदालत में पेश किया. इसलामी कानून में विवाह के बाहर सैक्स निषिद्ध है, लिहाजा अधिकारियों को उसे जेल ले जाने की खुली छूट मिल गई जहां उन्हें कोड़े मारे गए, व्यभिचार का दोषी ठहराया गया और फिर कोर्ट द्वारा उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. लेकिन वे अधिकारियों के साथ एक सौदा कर के फांसी से बच गए. अपनी स्वतंत्रता के बदले में एबादी के पति को एबादी की सार्वजनिक रूप से निंदा करनी पड़ी. उन को कहना पड़ा, 'शीरीन एबादी नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने की हकदार नहीं थी. उसे पुरस्कार इसलिए दिया गया ताकि वह इसलामी गणराज्य को गिराने में मदद कर सके. वह पश्चिम, विशेष रूप से अमेरिका, की समर्थक है.'
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