■ राहुल को जातिगत राजनीति के आइडिया पर चलने के लिए सलाह दी गई, लेकिन हिंदी बेल्ट में इसका कोई लाभ नहीं हुआ।
■ अब सवाल है कि राहुल गांधी गुस्से में चापलूसों को बाहर करेंगे या फिर पार्टी को और बड़ी हार का सामना करना पड़ेगा।
लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी हरियाणा की हार के बाद से गुस्से से भरे बैठे हैं। उन्होंने अपने नेताओं की साथ हुई बैठक में गुस्सा उतारा भी। लेकिन गुस्सा कम नहीं हुआ। यही नहीं गुस्से में तमतमाते हुए कांग्रेस मुख्यालय भी आए। कोषाध्यक्ष अजय माकन के कमरे में काफी देर बैठे रहे, किसी से बात किए बिना वहां से चले गए। जब वह कांग्रेस मुख्यालय में बैठे थे, एक भी पदाधिकारी वहां मौजूद नहीं था। शायद राहुल हरियाणा की हार से अब समझ गए होंगे कि जिस टीम पर वह सबसे ज्यादा भरोसा कर रहे हैं, उसी में ही असल कमी है।
समझा जा रहा है कि राहुल का गुस्सा इस बार शायद कुछ रंग लाए और नए साल में नई कांग्रेस दिखाई दे |राहुल की टीम में लंबे समय से उनका अपना स्टाफ तो है ही जिस पर भरोसा करते हैं, लेकिन राजनीतिक तौर पर पार्टी मुख्यालय में आज के दिन उनके सबसे भरोसे मंद संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल पार्टी में अध्यक्ष से भी ज्यादा ताकतवर माने जाने वाले नेताओं में गिने जाते है। उनके साथ दूसरे नंबर पर अजय माकन आते है। एक अन्य नाम मीडिया और सोशल मीडिया तक पार्टी की उपस्थिति दर्ज कराने वाले जयराम रमेश है। सैम पित्रोदा विदेश में बैठ दिल्ली की राजनीति करवाते हैं। ये भी भरोसे वालों में आते हैं, लेकिन पार्टी संगठन में इनका दखल नहीं होता है। इन्हीं सभी के कहने पर राहुल गांधी ने लोकसभा में 99 सीट जीतने का ऐसा जश्न मनाया कि पार्टी की असल कमजोरियों को उजागर ही नहीं होने दिया। इन नेताओं ने राहुल को समझने ही नहीं दिया कि हिंदी बेल्ट के प्रमुख राज्यों में पार्टी बीजेपी से सीधे मुकाबले में बुरी तरह हारी है। मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल, दिल्ली जैसे राज्य में जीरो सीट आई। राहुल गांधी को भी समझा दिया अब कोई चिंता नहीं है।
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