पिछले यानी 2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी उन 23 प्रत्याशियों में शामिल थे, जो दो सीटों से चुनाव लड़े थे। वह वायनाड और अमेठी से मैदान में उतरे, हालांकि अमेठी से हार गए। इसलिए वहां उपचुनाव की नौबत नहीं आई। लेकिन वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वडोदरा और वाराणसी दो जगह से लड़े थे और दोनों ही सीट जीते। इसलिए उन्हें वडोदरा छोड़ना पड़ा, जहां बाद में उपचुनाव हुआ।
वर्षों से निर्वाचन आयोग इस तर्क से सहमत दिख रहा है कि किसी भी प्रत्याशी को केवल एक ही सीट से चुनाव लड़ने की व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि दो सीट से लड़ने और दोनों को जीतने की स्थिति में एक सीट छोड़नी पड़ती है और वहां उपचुनाव कराने में सरकारी धन और संसाधनों की बरबादी होती है।
वर्ष 1996 में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 33 में संशोधन कर किसी भी प्रत्याशी को केवल दो सीटों से चुनाव लड़ने का प्रावधान किया गया था। कानून में संशोधन से पहले तक कोई व्यक्ति कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था। उदाहरण के लिए 1957 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के टिकट पर उत्तर प्रदेश में तीन सीटों- मथुरा, लखनऊ और बलरामपुर से चुनाव लड़े थे। उन्हें बलराम से सफलता मिली थी। इसी प्रकार उन्होंने 1962 और फिर 1991 में दो सीटों से लोक सभा चुनाव लड़ा।
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दिल्ली हवाई अड्डे पर फंसे यात्रियों के लिए विशेष व्यवस्था
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गतिरोध टूटा, संविधान पर होगी चर्चा
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