श्रीनगर के मुनव्वराबाद के रहने वाले 19 वर्षीय फारूक मट्टू पिछले कुछ सप्ताह से बड़ी ऊहापोह में फंसे हैं। भारी बारिश के कारण उनके मोहल्ले समेत लगभग पूरे शहर में पानी भरा है। इस कारण वह पिछले कुछ दिनों से काम पर भी नहीं जा पा रहे हैं। लेकिन इस कश्मीरी युवा की समस्या मौजूदा जलभराव जैसी चुनौती से कहीं अधिक गंभीर है।
मट्टू कहते हैं, ‘मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि इस जलभराव की शिकायत किससे करूं अथवा किसे शिकायत लिखकर दूं। यहां लोक निर्माण विभाग बेपरवाह है। सब कुछ भगवान भरोसे है। यदि हम अपनी समस्या को लेकर विरोध प्रदर्शन करें भी तो सवाल उठता है किसके खिलाफ करें? उम्मीद है अगले एक महीने में चीजें कुछ बेहतर होंगी।’ मट्टू जम्मू-कश्मीर के उन मतदाताओं में शामिल हैं, जो यहां विधान सभा चुनाव में पहली बार अपना वोट डालेंगे। केंद्र शासित प्रदेश में तीन चरणों में 18 सितंबर से मतदान होगा और मतगणना 8 अक्टूबर को होगी।
मुख्य चुनाव अधिकारी के मुताबिक 18 से 19 साल की उम्र के 45,964 मतदाता हैं। इनमें आधे से अधिक (24,310) महिलाएं हैं। इस समय राज्य में कुल युवा मतदाताओं की संख्या 25.3 लाख है। जो पीढ़ी सरकारी कार्यप्रणाली से पूरी तरह कट चुकी है, उसके लिए ये चुनाव एक सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कहीं अधिक मायने रखते हैं।
कश्मीर घाटी में रहने वाले एक राजनीतिक विश्लेषक ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहते हैं, इसीलिए बीते लोक सभा चुनाव में राज्य में बंपर वोटिंग हुई। पिछले दस वर्षों में सरकार लोगों की पहुंच से दूर हुई है। बिना सरकार के तो आप किसी के खिलाफ भी अपनी आवाज नहीं उठा सकते। कोई काम नहीं होने पर कहीं शिकायत भी नहीं कर सकते। इसलिए लोग विधान सभा चुनाव को लेकर खासे उत्साहित हैं।’
Denne historien er fra September 09, 2024-utgaven av Business Standard - Hindi.
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