यह मामला भारत फोर्ज के चेयरमैन बाबा कल्याणी और उनके छोटे भाई गौरीशंकर कल्याणी के बीच उनकी दिवंगत मां सुलोचना की वसीयत को लेकर दो वसीयतों के कानूनी झगड़े से जुड़ा है। कल्याणी परिवार की संपत्ति को लेकर चल रहे कानूनी विवाद में अब एक नया मोड़ आया है जिसमें बाबा, गौरीशंकर और उनकी बहन सुगंधा हिरेमठ के बच्चों के बीच चल रहे विवाद में पुणे की अदालत ने विभिन्न पक्षों की दलीलों को सुनने के लिए हस्तक्षेप किया है।
बाबा ने पुणे की दीवानी अदालत का रुख किया है और उन्होंने 27 जनवरी 2012 की सुलोचना की वसीयत को लागू करने की मांग जाहिर की है। वहीं उनके भाई गौरीशंकर को इस पर आपत्ति है और उन्होंने 17 दिसंबर 2022 की एक अलग वसीयत का हवाला देते हुए इसका विरोध किया है जिसमें उनकी मां की संपत्ति के वितरण का एक अलग तरीका सुझाया गया है।
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 में यह प्रावधान है कि बाद की वसीयत के चलते पहले की वसीयत रद्द हो जाती है। वसीयत में नामित लोगों का हक वसीयत पर तब संभव होता है जब वसीयत करने वाले उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। सिरिल अमरचंद मंगलदास की अधिकारी शैशवी कडकिया कहती हैं, ‘हालांकि इस प्रावधान पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दो अलग-अलग फैसलों में अलग-अलग राय दी है।’
वर्ष 2012 में उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि दूसरे वैध वसीयत के क्रियान्वयन से स्वतः तरीके से पिछली वसीयत निरर्थक हो जाती है क्योंकि दूसरी वसीयत, वास्तव में वसीयतकर्ता की अंतिम इच्छा को दर्शाता है और बाद की वसीयत करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि पहले की वसीयत रद्द करने का विशिष्ट प्रावधान हो (महेश कुमार (मृत) बनाम एल.आर.एस. विनोद कुमार और अन्य के संदर्भ में)।
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