झज्जर जिले के बहादुरगढ़ के लोगों को सबसे ज्यादा चिंता बेरोजगारी की है। 24 वर्षीय दीपक कुमार कभी भारतीय सेना में जाने का ख्वाब देखते थे, लेकिन वह जा नहीं सके और अब नौकरी की तलाश में हैं। वह कहते हैं, 'कोविड के दौरान जिन्होंने 10वीं की परीक्षा पास की थी वह अब अग्निवीर के तौर पर सेना में शामिल हो रहे हैं। वे उतने पढ़ेलिखे नहीं हैं और उम्र के अनुसार अनुभव भी काफी कम है।' उन्हें अफसोस होता है कि बेहतर पढ़ाई लिखाई करने वाले भी उसी जमात में शामिल हो गए हैं। उनके चाचा प्रवीण कुमार भी उनकी बातों से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं, 'हरियाणा के लोगों, किसानों और पहलवानों को विरोध-प्रदर्शन करते हुए देखना काफी बुरा लगता है।'
इन्हीं मुद्दों के बीच बहादुरगढ़ में जोरदार चुनावी भिड़ंत होने जा रही है। यहां कांग्रेस के मौजूदा विधायक राजेंद्र सिंह जून की टक्कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार दिनेश कौशिक से है। पिछली बार साल 2019 के चुनावों में कौशिक के बड़े भाई नरेश यहां से चुनाव लड़े थे मगर वह जून से 15 हजार मतों के अंतर से हार गए। इस बार भाजपा ने उनके छोटे भाई को टिकट दिया है। वहीं अन्य उम्मीदवारों में राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष नफे सिंह राठी की पत्नी शीला नफे सिंह राठी भी हैं। नाफे की इस साल फरवरी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
इसके अलावा दिल्ली से सटे रोहतक में जहां देश का सबसे बड़ा थोक कपड़ा बाजार शोरी मार्केट है, वहां भी रोजगार, कारोबार और बुनियादी ढांचा प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं।
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कोहरे से 500 उड़ानें, 24 ट्रेनें प्रभावित
कोहरा और धुंध एक बार फिर परेशान करने लगी है। राजधानी दिल्ली में घने कोहरे के कारण शुक्रवार को आईजीआई एयरपोर्ट पर आने और जाने वाली लगभग 500 उड़ानों में देर हुई जबकि 24 रेलगाड़ियां भी अपने गंतव्य पर देर से पहुंची।
कुशल पेशेवर दोनों देशों के लिए मददगार
अमेरिका में एच1बी वीजा पर छिड़ी बहस पर विदेश मंत्रालय ने दिया जवाब
आगामी बजट में रक्षा क्षेत्र पर हो विशेष ध्यान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पास इस बार पहले जैसा या एक ही लीक पर चलने वाला बजट पेश करने का विकल्प नहीं है। वृद्धि, रोजगार, बुनियादी ढांचे और राजकोषीय संतुलन पर जोर तो हमेशा ही बना रहेगा मगर 2025-26 के बजट में उस पर ध्यान देने की जरूरत है, जिसे बहुत पहले तवज्जो मिल जानी चाहिए थीः बाह्य और आंतरिक सुरक्षा।
महिला मतदाताओं की बढ़ती अहमियत
पहली नजर में तो यह चुनाव जीतने का नया और शानदार सियासी नुस्खा नजर आता है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए नकद बांटो, परिवहन मुफ्त कर दो और सार्वजनिक स्थानों तथा परिवारों के भीतर सुरक्षा पक्की कर दो। बस, वोटों की झड़ी लग जाएगी। यहां बुनियादी सोच यह है कि महिला मतदाता अब परिवार के पुरुषों के कहने पर वोट नहीं देतीं। अब वे अपनी समझ से काम करती हैं और रोजगार, आर्थिक आजादी, परिवार के कल्याण तथा अपने अरमानों को ध्यान में रखकर ही वोट देती हैं।
श्रम मंत्रालय तैयार कर रहा है रूपरेखा
गिग वर्कर की सामाजिक सुरक्षा
भारत के गांवों में गरीबी घटी
वित्त वर्ष 2024 में पहली बार गरीबी अनुपात 5 प्रतिशत से नीचे गिरकर 4.86 प्रतिशत पर आ गया, जो वित्त वर्ष 2023 में 7.2 प्रतिशत था